Wednesday, 12 June 2013

मोहम्मद गज़नवी भारत का प्रथम आतंकवादी ...

मोहम्मद गज़नवी भारत का प्रथम इस्लामीक आतंकवादी ...
गज़नवी ने भारत में किये जिहाद का वर्णन निचे उसके प्रधानमंत्री द्वारा लिखी पुस्तक के संदर्भ के साथ पढे.. भारत के विरुद्ध सुल्तान महमूद के जिहाद का वर्णन उसके प्रधानमंत्री अल- उत्बी द्वारा बड़ी सूक्ष्म सूचनाओं के साथ भी किया गया है और बाद में एलियट और डाउसन द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद करके अपने ग्रन्थ, ‘दी स्टोरी ऑफ इण्डिया एज़ टोल्ड बाइ इट्स ओन हिस्टोरियन्स, के खण्ड २ में उपलब्ध कराया गया है।’ पुरुद्गापुर (पेशावर) में जिहाद अल-उत्बी ने लिखा- ‘अभी मध्याह भी नहीं हुआ थाकि मुसलमानों ने ‘अल्लाह के शत्रु’, हिन्दुओं के .विरुद्ध बदला लिया और उनमें से पन्द्रह हजार को काट कर कालीन की भाँति भूमि पर बिछा दिया ताकि शिकारी जंगली जानवर और पक्षी उन्हें अपने भोजन के रूप् मेंखा सकें। अल्लाह ने कृपा कर हमें लूट का इतना माल दिलाया है कि वह गिनती की सभी सीमाओं से परे है यानि कि अनगिनत है जिसमें पाँच लाख दास, सुन्दर पुरुष और महिलायें हैं। यह ‘महान’ और ‘शोभनीय’ कार्य वृहस्पतिवार मुहर्रम की आठवी ३९२ हिजरी (२७.११.१००१) को हुआ’ (अल-उत्बी-की तारीख-ई-यामिनी, एलियट और डाउसनखण्ड पृष्ठ २७) नन्दना की लूट अल-उत्बी ने लिखा- ‘जब सुल्तान ने हिन्द को मूर्ति पूजा से मुक्त कर दिया था, और उनके स्थान पर मस्जिदें खड़ी कर दी थीं, उसके बाद उसने उन लोगों को, जिनके पास .मूर्तियाँ थीं, दण्ड देने का निश्चय किया। असंखय, असीमित व अतुल लूट के माल और दासों के साथ सुल्तान लौटा। ये सब इतने अधिक थे कि इनका मूल्य बहुतघट गया और वे बहुत सस्ते हो गये; और अपने मूल निवास स्थान में इन अति सम्माननीय व्यक्तियों को अपमानित किया गया कि वे मामूली दूकानदारों के दास बना दिये गये। किन्तु यह अल्लाह की कृपा ही है उसका उपकार ही है कि वह अपने पन्थ को सम्मान देता है और गैर मुसलमानों को अपमान देता है।’ (उसी पुस्तक में पृष्ठ ३९) थानेश्वर में (कत्लेआम) नरसंहार अल-उत्बी लिपि बद्ध करता है- ‘इस कारण से थानेश्वर का सरदार अपने अविश्वास में-अल्लाह की अस्वीकृति में-उद्धत था। अतः सुल्तान उसके विरुद्ध अग्रसर हुआ ताकि वह इस्लाम की वास्तविकता का माप दण्ड स्थापित कर सके और .मूर्ति पूजा का मूलोच्छेदन कर सके। गैर-मुसलमानों (हिन्दु बौद्ध आदि) का रक्त इस प्रचुरता, आधिक्य व बहुलता से बहा कि नदी के पानी का रंग परिवर्तित हो गया और लोग उसे पी न सके। यदि रात्रि न हुई होती और प्राण बचाकर भागने वाले हिन्दुओं के भागने के चिह्न भी गायब न हो गये होते तो न जाने कितने और शत्रुओं का वध हो गया होता। अल्लाह की कृपा से विजय प्राप्त हुई जिसने सर्वश्रेष्ठ पन्थ, इस्लाम, की सदैव के लिए स्थापना की (उसी पुस्तक में पृष्ठ ४०-४१) फरिश्ता के मतानुसार, ‘मुहम्मद की सेना, गजनी में, दो लाख बन्दी लाई थी जिसके कारण गजनी एक भारतीय शहर की भाँति लगता था क्योंकि हर एक सैनिक अपने साथ अनेकों दास व दासियाँ लाया था। (फरिश्ता : एलियट और डाउसन – खण्ड I पृष्ठ २८) सिरासवा में नर संहार अल-उत्बी आगे लिखता है- ‘सुल्तान ने अपने सैनिकों को तुरन्त आक्रमण करने का आदेश् दिया। परिणामस्वरूप अनेकों गैर-मुसलमान बन्दी बना लिये गये और मुसलमानों ने लूट के मालकी तब तक कोई चिन्ता नहीं की जब तक उन्होंने अविश्वासियों, (हिन्दुओं) सूर्य व अग्नि के उपासकों का अनन्त वध करके अपनी भूख पूरी तरह न बुझा ली। लूट का माल खोजने के लिए अल्लाह के मित्रों ने पूरे तीन दिनों तक वध किये हुए अविश्वासियों (हिन्दुओं) के शवों की तलाशी ली बन्दी बनाये गये व्यक्तियों की संखया का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक दास दो से लेकर दस दिरहम तक में बिका था। बाद में इन्हें गजनी ले जाया गया और बड़ी दूर-दूर के शहरों से व्यापारी इन्हें खरीदने आये थे। गोरे और काले, धनी और निर्धन, दासता के एक समान बन्धन में, सभी को मिश्रित कर दिया गया।’ (अल-उत्बी : एलियट और डाउसन – खण्ड ii पृष्ठ ४९-५०) अल-बरूनी ने लिखा था- ‘महमूद ने भारती की सम्पन्नता को पूरी तरह विध्वस ... .कर दिया। इतनाआश्चर्यजनक शोषण व विध्वंस किया था कि हिन्दू धूल के कणों की भाँति चारों ओर बिखर गये थे। उनके बिखरे हुए अवशेष निश्चय ही मुसलमानों की चिरकालीन प्राणलेवा, अधिकतम घृणा को पोषित कर रहे थे।’ (अलबरूनी-तारीख-ई-हिन्द अनु. अल्बरुनीज़ इण्डिया, बाई ऐडवर्ड सचाउ, लन्दन, १९१०) सोमनाथ की लूट ‘सुल्तान ने मन्दिर में विजयपूर्वक प्रवेश किया, शिवलिंग को टुकड़े-टुकड़े कर तोड़ दिया, जितने में समाधान हुआ उतनी सम्पत्ति कोआधिपत्य में कर लिया। वह सम्पत्ति अनुमानतः दो करोड़ दिरहम थी। बाद में मन्दिर का पूर्ण विध्वंस कर, चूरा कर, भूमि में मिला दिया, शिवलिंग के टुकड़ों को गजनी ले गया, जिन्हें जामी मस्जिद की सीढ़ियों के लिए प्रयोग किया’ (तारीख-ई-जैम-उल-... ..मासीर, दी स्ट्रगिल फौर ऐम्पायर-भारतीय विद्या भवन पृष्ठ २०-२१) मुहम्मद गौरी (११७३-१२०६) हसन निज़ामी ने अपने ऐतिहासिक लेख, ‘ताज-उल-मासीर’, में मुहम्मद गौरी के व्यक्तितव और उसके द्वारा भारत के बलात् विजय का विस्तृतवर्णन किया है। युद्धों की आवश्यकता और लाभ के वर्णन, जिसके बिना मुहम्मद का रेवड़ अधूरा रह जाता है अर्थात् उसका अहंकार पूरा नहीं होता, के बादहसन निज़ामी ने कहा ‘कि पन्थ के दायित्वों के निर्वाह के लिए जैसा वीर पुरुष चाहिए वह, सुल्तानों के सुल्तान अविश्वासियों और बहु देवता पूजकों के विध्वंसक, मुहम्मद गौरी के शासन में उपलब्ध हुआ; और उसे अल्लाह ने उस समय के राजाओं और शहंशाहों में से छांटा था, ‘क्योंकि उसने अपने आपको पन्थ के शत्रु.के मूलोच्छदन एवं सवंश् विनाश के लिए नियुक्त किया था। उनके हदयों के रक्त से भारत भूमि कोइतना भर दिया था, कि कयामत के दिन तक यात्रियों को नाव में बैठकर उस गाढ़े खून की भरपूर नदी को पार करना पड़ेगा। उसने जिस किले पर आक्रमण किया उसे जीत लिया, मिट्टी में मिला दिया और उस (किले) की नींव व खम्मों को हाथियों के पैरों के नीचे रोंद कर भस्मसात कर दिया; और मूर्ति पूजकों के सारे विश्व को अपनी अच्छी धार वाली तलवार से काट कर नर्क की अग्नि में झोंक दिया;और मंदिरों की जगह मस्जिद बनवा दी!!

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