Sunday, 27 May 2012

चचाजान नेहरु सिर्फ ऐयाश ही नही बल्कि भ्रष्ट भी था |

चचाजान नेहरु सिर्फ ऐयाश ही नही बल्कि भ्रष्ट भी था |
[३ जून १९८८ को नवभारत टाइम्स मे छपी खबर ]
मित्रों, जो "चचाजान " नेहरु हमारे उपर जबरजस्ती थोपे गए है , जबरजस्ती इसलिए क्योकि शायद नेहरु कांग्रेसियो के माँ के देवर लगते थे इसलिए उन्हें भारत का चचाजान बना दिया | और हम आमिर खान के प्रोग्राम मे देखते ही है कि लोगो को ऐसे चचाजान और अंकल से सावधान रहने की हिदायत दी जाती है | ये चचाजान नेहरु कितने भ्रष्ट थे और इनके अंदर लोकतंत्र के प्रति क्या भावना थी वो इस लेख से पता चलता है |
जवाहर लाल नेहरु देश मे हुए प्रथम आम चुनाव मे यूपी की रामपुर सीट से पराजित घोषित हो चुके कांग्रेसी प्रत्याशी मौलाना अबुल कलम आज़ाद को किसी भी कीमत पर जबरजस्ती जिताने के आदेश दिये थे | उनके आदेश पर यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं गोविन्द वल्लभ पन्त ने रामपुर के जिलाधिकारी पर घोषित हो चुके परिणाम बदलने का दबाव डाला और इस दबाव के कारण प्रशासन ने जीते हुए प्रत्याशी विशन चन्द्र सेठ की मतपेटी के वोट मौलाना अबुल के पेटी के डलवाकर
दुबारा मतगणना करवाकर मौलाना अबुल को जीता दिया |
मित्रों, ये रहस्योदघाटन यूपी के तात्कालीन सुचना निदेशक शम्भुनाथ टंडन ने अपने एक लेख मे किया है | उन्होंने अपने लेख "जब विशन सेठ ने मौलाना आजाद को धुल चटाई थी ..भारतीय इतिहास की एक अनजान घटना " मे लिखा है की भारत मे नेहरु ही बूथ कैप्चरिंग के पहले मास्टर माइंड थे | उस ज़माने मे भी बूथ पर कब्जा करके परिणाम बदल दिये जाते थे और देश के प्रथम आम चुनाव मे सिर्फ यूपी मे ही कांग्रेस के १२ हारे हुए प्रत्याशियों को जिताया गया | देश के बटवारे के बाद लोगो मे
कांग्रेस और खासकर नेहरु के प्रति बहुत गुस्सा था लेकिन चूँकि नेहरु के हाथ मे अंतरिम सरकार की कमान थी इसलिए नेहरु ने पूरी सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल
करके जीत हासिल थी थी | देश के बटवारे के लिए हिंदू महासभा ने नेहरु और गाँधी की तुष्टीकरण की नीति को जिम्मेदार मानते हुए देश मे उस समय जबरजस्त आन्दोलन चलाया था और लोगो मे नेहरु के प्रति बहुत गुस्सा था | इसलिए हिंदू महासभा ने कांग्रेस के दिग्गज नेताओ के खिलाफ हिंदू महासभा के दिग्गज
लोगो को खड़ा करने का निश्चय किया था .. इसीलिए नेहरु के खिलाफ फूलपुर से संत प्रभुदत्त ब्रम्हचारी और मौलाना अबुल के खिलाफ रामपुर से भईया विशन चन्द्र सेठ को लडाया गया | नेहरु को भी अंतिम राउंड मे जबरजस्ती २००० वोट से जिताया गया | वही सेठ विशन चन्द्र के पक्ष मे भारी मतदान हुआ और मतगणना के
पश्चात प्रशासन ने बकायदा लाउडस्पीकरों से सेठ विशन चंद को १०००० वोट से विजयी घोषित कर दिया | और फिर रामपुर मे हिंदू महासभा के लोगो ने विशाल विजयी जुलुस भी निकाला | फिर जैसे ही ये खबर वायरलेस से लखनऊ फिर दिल्ली पहुची तो मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की अप्रत्याशित हार की खबर से नेहरु तिलमिला और तमतमा उठे | उन्होंने तुरंत यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं गोविन्द वल्लभ पन्त को चेतावनी भरा संदेश दिया की मै मौलाना की हार
को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नही कर सकता , अगर मौलाना को जबरजस्ती नही जिताया गया तो आप अपना इस्थीपा शाम तक दे दीजिए |
फिर पन्त जी ने आनन फानन मे सुचना निदेशक [जो इस लेख के लेखक है ] शम्भूनाथ टंडन को बुलाया और उन्हें रामपुर के जिलाधिकारी से सम्पर्क करके किसी भी कीमत पर मौलाना अबुल को जिताने का आदेशदिया .. फिर जब शम्भुनाथ जी के कहा की सर इससे दंगे भी भडक सकते है तो इस पर पन्त जी ने कहा की देश
जाये भांड मे नेहरु जी का हुकम है | फिर रामपुर के जिलाधिकारी को वायरलेस पर मौलाना अबुल को जिताने के आदेश दे दिये गए | फिर रामपुर के सीटी कोतवाल ने सेठ विशनचन्द्र के पास गया और कहा कि आपको जिलाधिकारी साहब बुला रहे है .. जबकि वो लोगो की बधाईयाँ स्वीकार कर रहे थे | और जैसे ही जिलाधिकारी ने उनसे कहा कि मतगणना दुबारा होगी तो सेठ विशन चन्द्र ने इसका कड़ा विरोध किया और कहा कि मेरे सभी कार्यकर्ता जुलुस मे गए है ऐसे मे आप बिना मतगणना एजेंट के दुबारा कैसे मतगणना कर सकते है ? लेकिन उनकी एक नही सुनी गयी .. और डीएम के साफ साफ कहा कि सेठ जी हम अपनी नौकरी बचाने के लिए
आपकी बलि ले रहे है क्योकि ये नेहरु का आदेश है | शम्भुनाथ टंडन जी ने आगे लिखा है कि चूँकि उन दिनों प्रत्याशियो के नामो की अलग अलग पेटियां हुआ
करती थी और मतपत्र पर बिना कोई निशान लगाये अलग अलग पेटियों मे डाले जाते थे इसलिए ये बहुत आसान था कि एक प्रत्याशी के वोट दूसरेकी पेटी मे मिला दिये जाये |
देश मे हुए प्रथम आमचुनाव की इसी खामी का फायदा उठाकर ऐसय्श नेहरु ने इस देश की सत्ता पर काबिज हुआ था और उस नेहरु ने इस देश मे जो भ्रष्टाचार के बीज बोये थे वो आज उसके खानदान के "काबिल" वारिसों के अच्छी तरह देखभाल करने की वजह के एक वटवृक्ष बन चूका है |

Friday, 25 May 2012

चाँदी का वर्क क्या आप ये जानते हैं की ये वर्क कैसे बनता है ?...

जिसको चाँदी का वर्क बोला जाता है लेकिन क्या आप ये जानते हैं की ये वर्क कैसे बनता है ?...
आप को जब ये पता चले गा तो आप लोगये वर्क कभी भी इस्तेमाल हुई मिठाई नही खाऊगे
खाना तो दूर की बात आप इसको देखना भी पसंद नहीं करोगे
ये बनाया जाता है गऊ माता की आंत से
आप को ये बताना चाहता हूँ की जब गऊ माता को मारा जाता है तो गऊ माता के पेट से जो आंत निकलती है सिर्फ उससे ही वर्क बन सकता है
और किसी भी पशु की आंत से या किसीऔर वस्तु से ये नहीं बन सकता .
जब आंत को काट कर उसके अंदर वर्क का बड़ा टुकड़ा दाल दिया जाता है और उसकी लकड़ी के हतोड़े से पिटाईकी जाती है जिससे आंत फ़ैल जाती है क्यों की गऊ की आंत कभी नहीं फटती वर्क जो आसानी से पिटाई के दोरान फ़ैल जाता है और पूरी आंत वर्क में बदल जाती है
लेकिन हम इतने शर्म निर्पेक्स हैं की हम सब कुछ पता होते हुए भी हम ये पाप कर रहे हैं


एक नम्र निवेदन : सभी गौ रक्षक मित्रो से ....
आएये और कसम खाये की हमारे घर पर चाँदी के वर्क लगी मिठाई या कोई अन्य खाने की वस्तु को
ना हम आपने घर पर लायेगे और ना हीकिसी को उपहार में देंगे
हमें चाँदी के वर्क लगी मिठाई नाहम खयेगे और ना ही आपने परिवार और मित्रो को खाने देगे ....

जिस दिन से हम ये करने लगेगे आप देख लेना ५०% बुचर खाने बंद हो जाये गे ......

Wednesday, 23 May 2012

हिन्दू मंदिरों के संपत्ति की सरकारी लूट : एक तथ्य

हिन्दू मंदिरों के संपत्ति की सरकारी लूट : एक तथ्य

हिन्दुओ के मंदिर और उनकी सम्पदाओ को नियंत्रित करने के उद्देश से सन १९५१ में एक कायदा बना - "The Hindu Religious and Charitable Endowment Act १९५१ "

इस कायदे के अंतर्गत राज्य सरकारों को मंदिरों की मालमत्ता का पूर्ण नियंत्रण प्राप्त है,जिसके अंतर्गत वे मंदिरों की जमीन ,धन आदि मुल्यमान सामग्री को कभी भी कैसे भी बेच सकते है ,और जैसे भी चाहे उसका उपयोग कर सकते है .

हिन्दुस्तान में हो रहे मंदिरों की संपत्ति के सरकारी दुरुपयोग का रहस्योद्घाटन एक विदेशी लेखक "स्टीफन नाप " ने किया . उन्होंने इस विषय में एक पुस्तक लिखी -"Crimes Against India and the Need to Protect Ancient Vedic Tradition"

इस पुस्तक में उन्होंने अनेक धक्कादायक तथ्यों को उजागर किया है .

हिन्दुस्तान में सदियों में अनेक धार्मिक राजाओ ने हजारों मंदिरों का निर्माण किया , और श्रध्हलुओ ने इन मंदिरों में यथाशक्ति दान देकर उन्हें संपन्न किया परन्तु भारत की अनेक राज सरकारों ने श्रध्हलुओ की इस धन का अर्थात मंदिरों की संपत्तियो का यथेच्छा शोषण किया ,अनेक गैर हिंदू तत्वों के लिए इसका उपयोग किया .

इस घुसपैठी कानून के अंतर्गत श्रध्हलुओ की संपत्ति का किस तरह खिलवाड़ हो रहा है इसका विस्तृत वर्णन है -मंदिर अधिकारिता अधिनियम के तहत आँध्रप्रदेश के ४३००० मंदिरों के संपत्ति से केवल १८ % दान मंदिरों को अपने खर्चो के लिए दिया गया और बचा हुआ ८२ % कहा खर्च हुआ इसका कोई उल्लेख नहीं !

यहां तक कि विश्व प्रसिद्ध तिरूमाला तिरूपति मंदिर भी बख्शा नहीं गया, हर साल दर्शनार्थियों के दान से इस मंदिर में लगभग १३०० करोड रुपये आते है है जिसमे से ८५ % सीधे राज्यसरकार के राजकोष में चले जाता है , क्या हिंदू दर्शनार्थी इसलिए इन मंदिरों में दान करते है की उनका दान हिंदू-इतर तत्वों के काज करने में लगे?

स्टीफन एक और आरोप आंध्र प्रदेश सरकार पर करते है, उनके अनुसार कमसे कम १० मंदिरों को सरकारी आदेश पर अपनी जमीन देनी पड़ी , .......गोल्फ के मैदानों को बनाने के लिए !!!स्टीफन नाप प्रश्न करते है "क्या हिन्दुस्तान में १० मस्जिदों के साथ ऐसा होने की कल्पना की जा सकती है ?"

इसी प्रकार कर्णाटक में कुल २ लाख मंदिरों से ७९ करोड रुपैय्या सरकार ने बटोरा जिसमे से केवल ७ करोड रुपयों मंदिर कार्यकारिणियो को दिए गए .इसी दौरान मदरसों और हज सब्सिडी के नाम पर ५९ करोड खर्च हुआ और चर्च जिर्नोध्हर के लिए १३ आख का अनुदान दिया गया .सरकार के इस कलुशीत कार्य पर टिपण्णी देते हुए स्टीफन नाप लिखते है " ये सब इसलिए घटित होता रहा क्योंकि हिन्दुओ में इस के विरुद्ध खड़े रहने की या आवाज उठाने की शक्ति /इच्छा नहीं थी "

इन तथ्यों को प्रकाशित करते हुए स्टीफन केरल के गुरुवायुर मंदिर का उदहारण देते है , इस मंदिर के अनुदान से दूसरे ४५ मंदिरों का जिर्निध्धर करने की बात गुरुवायुर मंदिर कार्यकारिणी ने रखी थी,जिसको ठुकराते हुए मंदिर का सारा पैसा सरकारी प्रोजेक्ट पर खर्च किया गया !

इन सबसे ज्यादा कुकर्म ओरिसा सरकार के है जिसने जगन्नाथ मंदिर की ७०००० एकड़ जमीन बेचने निकाली है जिस से सरकार को इतनी आमदनी होना संभव है की जिसके उपयोग से वे अपने वित्तीय कुप्रबंधानो से हुए नुक्सान को भर सके .

ये बरसो से अविरत होता आया है, इसका प्रकाशन न होने की महत्वपूर्ण वजह है - "भारतीय मिडिया की हिन्दुवीरोधी प्रवृत्ति"भारतीय मिडिया (जिसमे अंग्रजीयात कूट कूट के भरी है ) इन तथ्यों को उजागर करने में किसी भी प्रकार की रूचि नहीं रखती .अतएव ये सब चलता रहता है .....अविरत ,बिना किसी रुकावट के !

इस धर्मनिरपेक्ष एवं लोकतांत्रित देश में हिन्दुओ की इन प्राचीन सम्पदाओ को दोनों हाथो से लुटाया जा रहा है , क्योंकि राज्यसर्कारे हिन्दुओ की अपने धर्म के प्रति उदासीनता को और उनकी अनंत सहिष्णुता को अच्छी तरह जानती है ...!!

परन्तु अब समय आ गया है की कोई हिंदू ,सरकार के इस के लूटमार केविरुद्ध आवाज उठाये , जनता के धन का (जो की उन्होंने इश्वर के कार्यों में दान किया है), इस तरह से होता सरकारी दुरुपयोग रोकने के लिए सरकार से प्रश्न करे !


एक गैर-हिंदू विदेशी लेखक को हिन्दुओ के साथ होता धार्मिक भ्रष्टाचार सहन नहीं हुआ ,और उसने इन तथ्यों को उजागर किया सार्वजनिक तौर पर, परन्तु लाखो हिंदू इस धार्मिक उत्पीड़नो को प्रतक्ष सहन करते आ रहे है ....क्यों ??? ..........................क्योंकि उनकी आत्माए मर चुकी है !!

Saturday, 12 May 2012

विमान शास्त्र का भारतीय इतिहास

साधारणतया यह माना जाता है कि पक्षियों की तरह आकाश में उड़ने का मानव का स्वप्न राइट बंधुओं ने १७ दिसम्बर, १९०३ में विमान बनाकर पूरा किया। और विमान विद्या विश्व को पश्चिम की देन है। इसमें संशय नहीं कि आज विमान विद्या अत्यंत विकसित अवस्था में पहुंची है।

परन्तु महाभारत काल तथा उससे पूर्व भारतवर्ष में भी विमान विद्या का विकास हुआ था। न केवल विमान अपितु अंतरिक्ष में स्थित नगर रचना भी हुई थी। इसके अनेक संदर्भ प्राचीन वाङ्गमय में मिलते हैं।

विद्या वाचस्पति पं. मधुसूदन सरस्वती ‘इन्द्रविजय‘ नामक ग्रंथ में ऋग्वेद के छत्तीसवें सूक्त के प्रथम मंत्र का अर्थ लिखते हुए कहते हैं कि ऋभुओं ने तीन पहियों वाला ऐसा रथ बनाया था जो अंतरिक्ष में उड़ सकता था। पुराणों में विभिन्न देवी-देवता, यक्ष, विद्याधर आदि विमानों द्वारा यात्रा करते हैं, रामायण में पुष्पक विमान का वर्णन आता है।

उपर्युक्त वर्णन जब आज का तार्किक व प्रयोगशील व्यक्ति सुनता या पढ़ता है तो उसके मन में स्वाभाविक विचार आता है कि ये सब कपोल कल्पनाएं हैं।

केवल सौभाग्य से एक ग्रंथ उपलब्ध है, जो बताता है कि भारत में प्राचीन काल में न केवल विमान विद्या थी, अपितु वह बहुत प्रगत अवस्था में भी थी। यह ग्रंथ, इसकी विषय सूची व इसमें किया गया वर्णन विगत अनेक वर्षों से देश-विदेश में अध्येताओं का ध्यान आकर्षित करता रहा है।

गत वर्ष दिल्ली के एक उद्योगपति श्री सुबोध से प्राचीन भारत में विज्ञान की स्थिति के संदर्भ में बात हो रही थी। बातचीत में उन्होंने अपना एक अनुभव बताया। सुबोध जी के छोटे भाई अमरीका के नासा में काम करते हैं। १९७३ में एक दिन उनका नासा से फोन आया कि भारत में महर्षि भारद्वाज का विमानशास्त्र पर कोई ग्रंथ है, वह नासा में कार्यरत उनके अमरीकी मित्र वैज्ञानिक को चाहिए। यह सुनकर सुबोध जी को आश्चर्य हुआ, क्योंकि उन्होंने भी प्रथम बार ही इस ग्रंथ के बारे में सुना था। बाद में उन्होंने प्रयत्न करके मैसूर से वह ग्रंथ प्राप्त कर उसे अमरीका भिजवाया। सन्‌ १९५० में गोरखपुर से प्रकाशित ‘कल्याण‘ के ‘हिन्दू संस्कृति‘ अंक में श्री दामोदर जी साहित्याचार्य ने ‘हमारी प्राचीन वैज्ञानिक कला‘ नामक लेख में इस ग्रंथ के बारे में विस्तार से उल्लेख किया था।

अभी वर्ष पूर्व बंगलूरू के वायुसेना से सेवानिवृत्त अभियंता श्री प्रह्लाद राव की इस विषय में जिज्ञासा हुई और उन्होंने अपने साथियों के साथ एरोनॉटिकल सोसाइटी आफ इंडिया के सहयोग से एक प्रकल्प ‘वैमानिक शास्त्र रीडिस्कवर्ड‘ लिया तथा अपने गहन अध्ययन व अनुभव के आधार पर यह प्रतिपादित किया कि इस ग्रंथ में अत्यंत विकसित विमान विद्या का वर्णन मिलता है। नागपुर के श्री एम.के. कावड़कर ने भी इस ग्रंथ पर काफी काम किया है।

महर्षि भरद्वाज ने ‘यंत्र सर्वस्व‘ नामक ग्रंथ लिखा था, उसका एक भाग वैमानिक शास्त्र है। इस पर बोधानंद ने टीका लिखी थी। आज ‘यंत्र सर्वस्व‘ तो उपलब्ध नहीं है तथा वैमानिक शास्त्र भी पूरा उपलब्ध नहीं है। पर जितना उपलब्ध है, उससे यह विश्वास होता है कि पूर्व में विमान एक सच्चाई थे।

वैमानिक शास्त्र के पहले प्रकरण में प्राचीन विज्ञान विषय के पच्चीस ग्रंथों की एक सूची है, जिनमें प्रमुख हैं अगस्त्य कृत-शक्तिसूत्र, ईश्वर कृत-सौदामिनी कला, भरद्वाज कृत-अंशुबोधिनी, यंत्र सर्वस्व तथा आकाश शास्त्र, शाक्टायन कृत- वायुतत्व प्रकरण, नारद कृत-वैश्वानरतंत्र, धूम प्रकरण आदि।

ग्रंथ के बारे में बताने के बाद भरद्वाज मुनि विमान शास्त्र के उनसे पूर्व हुए आचार्य तथा उनके ग्रंथों के बारे में लिखते हैं। वे आचार्य तथा उनके ग्रंथ निम्नानुसार थे।

(१) नारायण कृत-विमान चंद्रिका (२) शौनक कृत- व्योमयान तंत्र (३) गर्ग कृत-यंत्रकल्प (४) वाचस्पतिकृत-यान बिन्दु (५) चाक्रायणीकृत- खेटयान प्रदीपिका (६) धुण्डीनाथ- वियोमयानार्क प्रकाश

इस ग्रंथ में भरद्वाज मुनि ने विमान का पायलट, जिसे रहस्यज्ञ अधिकारी कहा गया, आकाश मार्ग, वैमानिक के कपड़े, विमान के पुर्जे, ऊर्जा, यंत्र तथा उन्हें बनाने हेतु विभिन्न धातुओं का वर्णन किया है।

रहस्यज्ञ अधिकारी (घ्त्थ्दृद्य)-भरद्वाज मुनि कहते हैं, विमान के रहस्यों को जानने वाला ही उसे चलाने का अधिकारी है। शास्त्रों में विमान चलाने के बत्तीस रहस्य बताए गए हैं। उनका भलीभांति ज्ञान रखने वाला ही सफल चालक हो सकता है ! इन बत्तीस रहस्यों में कुछ प्रमुख रहस्य निम्न प्रकार हैं।

(३) कृतक रहस्य-
(५) गूढ़ रहस्य-
(९) अपरोक्ष रहस्य-
(१०) संकोचा-
(११) विस्तृता-
(२२) सर्पागमन रहस्य-
(२५) परशब्द ग्राहक रहस्य-
(२६) रूपाकर्षण रहस्य-
(२८) दिक्प्रदर्शन रहस्य-
(३१) स्तब्धक रहस्य-
(३२) कर्षण रहस्य-

Thursday, 10 May 2012

अर्थमेव जयते!

अपने पहले ही एपिसोड में आमिर खान ने वह कर दिखाया जो लंबे समय तक सेवा करने के बाद आमतौर पर कोई समाजसेवक नहीं कर पाता. इसे आप तकनीकि का चमत्कार कहें और टीवी का प्रभाव कि आमिर खान ने एक झटके में करोड़ों दिलों को छू लिया. कुछ दर्दभरी कहानियां, कुछ तल्ख सच्चाईयां और कुछ झूठे मिथक पहले ही एपिसोड में टूट गये. लड़कियों को लेकर हमारा तथाकथित सभ्य समाज कितना असभ्य और जंगली है इसे जानकर भारत के किस नागरिक के मन में पीड़ा नहीं उभरी होगी? लेकिन कोई अगर आपको यह बता दे कि पीड़ा उभारने का यह कारोबार कम से कम स्टार टीवी और आमिर खान के लिए बहुत फायदे का सौदा है तो आपकी पीड़ा कितनी पीड़ित होगी? आपकी पीड़ा पीड़ित हो तो हो लेकिन सच्चाई तो यही है.

इन परिस्थितियों को देखते हुए कोई भी सोचेगा कि वास्तव में यह एक ऐसा प्रयास है जो देश के असहाय, गरीबों, निरीह लोगों की आवाज उभारने के लिए सच्चे मन से शुरू किया गया प्रयास है. लेकिन क्या यह संभव है कि घोर बाजारवादी युग में जीनेवाले लोगों के दिल में समाज के लिए इतना दर्द पैदा हो जाएगा कि वे अपना पैसा बहाकर सामाजिक सेवा करने निकल पड़ेंगे? ऐसा बिल्कुल नहीं है. इस समूची "सामाजिक क्रांति" का गजब का आर्थिक मॉडल है जो भावनात्मक शोषण की बुनियाद पर खड़ा किया गया है. लूट और ठगी का यह ऐसा बेहतरीन आर्थिक मॉडल है जो किसी और को कुछ दे या न दे, आमिर खान और स्टार समूह को मालामाल कर देगा. आइये समझते हैं कि इस सामाजिक सेवा का आर्थिक मेवा क्या है जिसे आमिर खान और स्टार न्यूज मिलकर खाने जा रहे हैं.

आमिर खान को सत्यमेव जयते के प्रति एपिसोड के लिए 3 करोड़ रूपया मिलेगा. महीने में कभी चार तो कभी पांच एपिसोड प्रसारित होंगे इस लिहाज से सत्यमेव जयते उन्हें हर महीने 12 से 15 करोड़ की मोटी कमाई करवायेगा. इसके अलावा स्टार प्लस ने इस कार्यक्रम का जमकर प्रचार किया है और संडे का टाइम स्लाट भी ऐसा चुना है जो किसी जमाने में रामायण या महाभारत का टाइम स्लाट हुआ करता था. इस टीवी शो की निर्माता खुद आमिर कान की कंपनी आमिर कान प्रोडक्शन्स लिमिटेड है इसलिए जानबूझकर समाज को समर्पित इस टीवी धारावाहिक के लिए जानबूझकर वह टाइम स्लाट चुना है. इसके पीछे कंपनी के कर्णधारों का तर्क है कि वे ऐसा प्राइट टाइम नहीं चुनना चाहते थे जिसमें दर्शकों को माल जाने या शापिंग करने की जल्दी लगी हो. इसलिए वे उस टाइम स्लाट पर गये जहां आदमी अपने घर में आराम से दिन शुरू करना चाहता है. ऐसा पहली बार हो रहा है कि कोई टेलीवीजन शो एक साथ सरकार के चैनल दूरदर्शन और एक निजी चैनल स्टार पर एकसाथ प्रसारित हो रहा है. इसके साथ ही स्टार के दूसरे सभी भाषाओं के चैनल और मा टीवी पर भी इसका प्रसारण होगा. मकसद ज्यादा से ज्यादा लोगों तक शो को पहुंचाना है.

इस कार्यक्रम के नाम में जो सत्यमेव जयते शब्द इस्तेमाल किया गया है वह भारत के राष्ट्रीय प्रतीक चिन्ह का वाक्य है. आखिर कैसे उसे किसी कामर्शियल टीवी शो को प्रयोग करने दिया गया? इस पर रोक लगे न लगे लेकिन इस घोर बाजारवादी युग में यह साबित हो गया कि सत्यमेव जयते भी जब किसी आमिर खान के हाथ में लगता है तो अर्थमेव जयते बन जाता है.
अब तक जितना इस शो का प्रोपोगेण्डा किया गया है उसमें यह समझाया गया है कि यह टीवी शो न सिर्फ सामाजिक मुद्दों को उठाने का ''महान काम'' कर रहा है बल्कि शो के जरिए समाजसेवी संस्थाओं को मदद भी पहुंचाई जा रही है. समाज के लिए गाहे बेगाहे काम करनेवाली फिल्मी अदाकारा शबाना आजमी ने इसे सामाजिक क्रांति की संज्ञा दे डाली हैं. सामाजिक क्रांति की तरफ टीवी के इस प्रयास का जो एसएमएस कैम्पेन चलाया जा रहा है उसमें भी सरकारी छूट प्रदान की जा रही है. कुछ कुछ उसी तर्ज पर जैसे यूरिया खाद पर सरकार किसानों को सब्सिडी देती आई है. आमतौर पर ऐसे कार्यक्रमों में जो एसएमएस भेजे जाते हैं उन्हें कामर्शियल कैटेगरी में रखा जाता है और पांच रूपये प्रति एसएमएस चार्ज किया जाता हैं. लेकिन सरकार ने सीधे सीधे चार रूपये की सब्सिडी दे दी है. इसलिए आप अगर आमिर खान की इस ''सामाजिक क्रांति'' को सपोर्ट करते हैं तो आपको प्रति एसएमएस खर्च आयेगा सिर्फ एक रूपया। यह पैसा भी आमिर खान प्रोडक्शन या स्टार टीवी को नहीं जाएगा बल्कि सीधे उस एनजीओ को दे दिया जाएगा जो उस खास शो के लिए चुना जाएगा. इसके अलावा रिलायंस कंपनी का रिलायंस फाउण्डेशन तो है ही जो बाकी बची रकम अदा कर देगी.
इन परिस्थितियों को देखते हुए कोई भी सोचेगा कि वास्तव में यह एक ऐसा प्रयास है जो देश के असहाय, गरीबों, निरीह लोगों की आवाज उभारने के लिए सच्चे मन से शुरू किया गया प्रयास है. लेकिन क्या यह संभव है कि घोर बाजारवादी युग में जीनेवाले लोगों के दिल में समाज के लिए इतना दर्द पैदा हो जाएगा कि वे अपना पैसा बहाकर सामाजिक सेवा करने निकल पड़ेंगे? ऐसा बिल्कुल नहीं है. इस समूची "सामाजिक क्रांति" का गजब का आर्थिक मॉडल है जो भावनात्मक शोषण की बुनियाद पर खड़ा किया गया है. लूट और ठगी का यह ऐसा बेहतरीन आर्थिक मॉडल है जो किसी और को कुछ दे या न दे, आमिर खान और स्टार समूह को मालामाल कर देगा. आइये समझते हैं कि इस सामाजिक सेवा का आर्थिक मेवा क्या है जिसे आमिर खान और स्टार न्यूज मिलकर खाने जा रहे हैं.
सत्यमेव जयते के जरिए भारत में गरीबी की मार्केटिंग करके अमीर बनने का एक नया मॉडल प्रस्तुत किया गया है. इस मॉडल में थोड़ा इमोशनल ब्लैकमेलिंग होती है, थोड़ा कारपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी होती है और ढेर सारा फ्रॉड शामिल होता है. मूलत: कारपोरेट घरानों की मैनेजमेन्ट स्टाइल में विकसित इस सोच में समझाया यह जाता है कि ऐसा करके वे समाजसेवा कर रहे हैं लेकिन ऐसे सामाजिक फ्रॉड के जरिए भावनाओं का जबर्दस्त व्यापार किया जाता है और कारपोरेट घराने देने के नाम पर जमकर आर्थिक लाभ कमाते हैं.
सत्यमेव जयते के लिए आमिर खान प्रोडक्शन्स लिमिटेड प्रति एपिसोड स्टार समूह से 4 करोड़ रूपया ले रहा है. इस चार करोड़ रूपये में तीन करोड़ रूपये आमिर खान की फीस है जो कि एक तरह से सीधे सीधे उनका फायदा है. बाकी बचा एक करोड़ रूपया प्रति एपिशोड खर्चा है जिसमें उनकी प्रोडक्शन कंपनी का मुनाफा भी शामिल है. यह मुनाफा आमिर कान के निजी फीस से अलग है. इसलिए अगर आमिर खान प्रति एपिशोड इस शो के लिए तीन करोड़ बतौर फीस ले रहे हैं तो कंपनी के प्रमोटर के बतौर उनको मुनाफे का हिस्सा अलग से पहुंच रहा है. इसके अलावा रिलायंस फाउण्डेशन से अलग से फीस वसूली जा रही है. क्योंकि इस कार्यक्रम के जरिए रिलायंस फाउण्डेशन भी समाजसेवक होकर उभरना चाहता है इसलिए वे भी पैसा देने में कोताही नहीं कर रहे हैं. अभी इस बात की पड़ताल होना बाकी है कि जो गैरसरकारी संगठन मदद के लिए चुने जा रहे हैं क्या वे पहले से रिलायंस के कारपोरेट सोशल रिस्पांसबिलिटी का हिस्सा हैं या फिर आगे चलकर उनका हिस्सा हो जानेवाले हैं. अगर ऐसा होता है तो रिलायंस फाउण्डेशन भी घाटे में नहीं रहेगा. अपने सीएसआर के लिए अब अगर उसे देश के दूसरे हिस्से में पहुंचना है तो यह कार्यक्रम एक बेहतर प्लेटफार्म बन जाएगा.
क्योंकि इस पूरे शो के एसएमएस कैम्पेन का पैसा सामाजिक संस्था को दिया जाएगा इसलिए एसएमएस की कीमत घटाकर एक रूपये कर दी गई. याद रखिए सरकार ने बाकी के चार रूपये की छूट नहीं दी है बल्कि सब्सिडी दी है. सब्सिडी का मतलब है कि यह पैसा कार्यक्रम निर्माता को अदा किया जाएगा लेकिन सरकार के खाते से. इस तरह एक रूपया सामाजिक संस्था को देकर बाकी के चार रूपये आमिर खान प्रोडक्शन और स्टार नेटवर्क आपस में बांट लेंगे. इसके अलावा जंगली.कॉम को भी इस कार्यक्रम में पार्टनर बनाया गया है जो कि इंटरनेट पर सामान बेचनेवाली कंपनी एमेजन.कॉम नेटवर्क का हिस्सा है. जंगली.कॉम आपको डोनेशन के लिए प्रेरित करेगी और आपसे कहेगी कि आप उसके यहां से माल खरीदते हैं तो वह उस एनजीओ को कुछ रेजगारी देगी जिसे आमिर खान ने अपने टीवी शो में दिखाया था.
इस गुणा गणित के अलावा विज्ञापन और मुख्य प्रायोजकों की कमाई तो है ही जो सीधे तौर पर स्टार समूह को जाएगी. अगर स्टार समूह हर एपीशोड पर चार करोड़ रूपया आमिर खान प्रोडक्शन्स को दे रहा है तो निश्चित है कि वह प्रति एपिशोड अच्छा खासा मुनाफा कमाना चाहेगा. इसीलिए इस टीवी शो का जमकर प्रचार किया गया है और भावनात्मक माहौल तैयार किया जा रहा है ताकि लोग इस कार्यक्रम से कुछ उसी तरह से भावनात्मक रूप से जुड़ जाएं जैसे रामायण या महाभारत से जुड़े थे. इसका फायदा स्टार समूह को होगा. ऊंची कीमत अदा करने के बाद वह अब तक का सबसे मंहगा विज्ञापन स्लॉट इस कार्यक्रम के लिए बेंच रहा है. प्रति 10 सेकेण्ड स्टार 10 लाख रूपये वसूल कर रहा है. एक घण्टे दस मिनट के इस कार्यक्रम में दस मिनट भी कामर्शियल ब्रेक बनता है तो प्रति एपिशोड छह करोड़ रूपये की आमदनी होती है. मीडिया रिपोर्ट बता रही है कि कार्यक्रम शुरू होने के पहले ही 80 प्रतिशत ऐड स्लॉट बेचा जा चुका था. इसके अलावा स्टार समूह ने छह सह प्रायोजक बनाये हैं जिसमें एक्सिस बैंक, कोका कोला, स्कोदा, बर्जर पेन्ट्स, डिक्सी टेक्सटाइल तथा जानसन एण्ड जानसन शामिल हैं. ये सभी कंपनियां 13 एपिसोड के लिए 6 से 7 करोड़ रूपया अतिरिक्त अदा करेंगी. भारती एयरटेल और एक्वागार्ड दो मुख्य प्रायोजक हैं जो क्रमश: 18 करोड़ और 16 करोड़ रूपये अदा कर रहे हैं. अब जरा हिसाब लगाइये कि सत्यमेव जयते की इमोशनल ब्लैकमेलिंग से आमिर खान और स्टार न्यूज कितना पैसा कमा रहे हैं?
अब यह बाजार का नया दांव है. भाव विहीन बाजार अब भावनाओं का व्यापार करता है. आप सौ रूपये का सैम्पू खरीदते हैं तो एक रूपये किसी गरीब बच्चे की पढ़ाई पर खर्च कर दिया जाता है. क्योंकि आप खुद बहुत गैरजिम्मेदार नागरिक हैं इसलिए हाशिये पर फेंके गये नागरिकों की चिंता कारपोरेट कंपनियां अपने हिसाब से करने लगी हैं. कारपोरेट कंपनियों से कोई यह नहीं पूछता कि इन हाशिये पर गये लोगों में तुम्हारा कितना योगदान है? कोई पूछे न पूछे कंपनियां जानती हैं कि अपने मुनाफे के लिए वे कैसे नागरिक से नागरिक को दूर कर देती हैं. इस बढ़ती दूरी से ही गरीबी और अभाव पैदा होता है और पैदा होता है वह गैरजिम्मेदार समाज जो अपनों का खून पीकर अपनी प्यास बुझाता है.
हम सब जानते हैं कि गरीब के निवाले पर पिछले करीब आधे शताब्दी तक हमारे देश में सरकारें अपना पेट भरती रही हैं. अब तो सरकारों ने गरीबों का नारा बनाना भी बंद कर दिया है. इसलिए गरीबों और आम आदमी के निवाले पर डाका डालने का नया फार्मूला कंपनियों ने इजाद कर लिया है. भावनात्मक शोषण उसका बड़ा कारगर हथियार है. इसलिए शो के दौरान जैसे ही किसी लड़की या महिला की आंख गीली होती है कैमरा कमजोर प्रेजेन्टर आमिर खान को छोड़कर उसे दिखाने लगता है. समस्या हमें भले ही परेशान न करती हो लेकिन समस्या देखकर परेशान हुए लोग तो प्रेरित करते ही हैं कि हमें भी परेशान हो जाना चाहिए. बस बाजार के इस व्यापार का यही मूल मंत्र है जिसे आमिर खान प्रोडक्शन और स्टार समूह के उदय शंकर मिलकर भुना रहे हैं. कल तक हंसी बिकती थी तो हंसी को बेचा गया, अब गम बिकेगा तो गम भी बाजार में बिकता नजर आयेगा.
फिर भी ऐसा नहीं है कि इस भावनात्मक शोषण के जरिए सिर्फ आमिर खान या स्टार न्यूज ही पैसा पीट रहे हैं. उन्हें भी कुछ न कुछ लाभ तो मिल ही रहा है जो इस शो का हिस्सा हो रहे हैं. फिर वे चाहे वे गैरसरकारी संगठन हों या फिर वह व्यक्ति जिसे इस शो के लिए चुना जाता है. लेकिन आखिर में सवाल यह उठता है कि अगर किसी एक ऐसे कार्यक्रम में जिसमें सबको फायदा होता दिख रहा है तो घाटे में कौन है? दिमाग पर जोर डालिए और सोचिए कि भावनात्मक रूप से आखिर किसे ब्लैकमेल करके यह सारा आर्थिक मॉडल तैयार किया गया है? सोचिए....सोचिए वह आदमी आपसे ज्यादा दूर नहीं है.

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Thursday, 3 May 2012

भारतीय स्थापत्य और वास्तुकला के ज्ञान की चोरी करते रहे अंग्रेज

भारतीय स्थापत्य और वास्तुकला के ज्ञान की चोरी करते रहे अंग्रेज
और हम उन्हे महान वास्तुकार मानते रहे ,
आप खुद देखे की सच क्या है ।
भारतीय संसद भवन का वास्तुकार लुटियंस को मानने वाले …देखे जरा की सच क्या है

पिछले साल दिल्ली के 100 साल पूरे हुये . इस जश्न-ए-दिल्ली में सरकारी महकमों से लेकर कई ग़ैर-सरकारी संगठनों ने राजधानी में कई कार्यक्रम आयोजित किए और मशहूर ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस की शान में खूब क़सीदे भी पढ़े. दिल्ली को नई पहचान देने में उनकी अहम भूमिका को याद किया गया. उनके द्वारा बनाई गई इमारतों में अगर सबसे ज़्यादा किसी की चर्चा होती है तो वह संसद भवन है. लेकिन क्या यही आखिरी सच है, शायद नहीं. सच कुछ और भी है, जिसकी अनदेखी पिछले कई दशकों से हो रही है.

मौजूदा संसद भवन और राष्ट्रपति भवन समेत राजधानी की कई बेहतरीन इमारतें सर लुटियंस और उनके सहयोगी हरबर्ट बेकर की देखरेख में बनाई गई थीं. 12 फरवरी, 1921 को मौजूदा संसद भवन की आधारशिला रखी गई थी. इसके निर्माण में छह साल लगे और तब इस पर 83 लाख रुपये की लागत आई थी.
संसद भवन का उद्‌घाटन 18 जनवरी, 1927 को तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड इर्विन ने किया था, लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता है कि

**भारतीय संसद के भवन का डिज़ाइन मध्य प्रदेश के नवीं सदी के एक शिव मंदिर पर आधारित है.**

जब भी संसद भवन की बात होती है तो उसमें सर एडविन लुटियंस का ज़िक्र आता है, लेकिन संसद भवन बनाने की प्रेरणा लुटियंस ने जहां से ली, उसकी चर्चा न तो किताबों में है और न ही पार्लियामेंट की वेबसाइट पर. हमारी संजीदा सरकार को यह हक़ीक़त पता हो इसकी संभावना कम है. यहां तक कि दिल्ली गज़ट में भी संसद भवन के निर्माण और उसकी परिकल्पना का पूरा श्रेय लुटियंस को ही दिया गया है.

हालांकि यह बात सही है कि जिस समय संसद भवन का निर्माण हुआ था, उस व़क्त भारत में अंग्रेजों का शासन था. ज़ाहिर है कि ब्रिटिश शासकों ने अपने अभिलेख में संसद भवन के डिज़ाइन को लुटियंस की मौलिक सोच क़रार दिया. अब जबकि देश को आज़ाद हुए 64 साल हो गए,

ऐसे में क्या यह ज़रूरी नहीं है कि हमारी सरकार संसद भवन के निर्माण और सर एडविन लुटियंस की भूमिका की सच्चाई से देश के लोगों को वाक़िफ कराए. दिल्ली के 100 साल पूरे होने पर हमारी सरकार ने भले ही एडविन लुटियंस का महिमामंडन किया हो,
लेकिन आज आप उस हक़ीक़त से रूबरू है, जिसे पिछले 100 वर्षों में न तो हमारे इतिहासकार सामने लाए और न ही हमारी सरकार. एक तऱफ देश के सर्वोच्च प्रतीक संसद की सुरक्षा और सुंदरता पर हर साल करोड़ों रुपये ख़र्च किए जाते हैं, लेकिन संसद भवन बनाने की प्रेरणा नवीं सदी में निर्मित जिस चौंसठ योगिनी शिव मंदिर मितावली से ली गई उसके प्रति हमारी सरकार तनिक भी गंभीर नहीं है. यही वजह है कि सैकड़ों साल पुराना यह ऐतिहासिक मंदिर अपनी पहचान की लड़ाई लड़ रहा है.


संसद भवन एक नज़र

निर्माण वर्ष : 1921-1927 के बीच
स्थान : नई दिल्ली
निर्माता : ब्रिटिश वास्तुविद सर एडविन लुटियंस और हरबर्ट बेकर

ख़ासियत : यह विश्व के किसी भी देश में विद्यमान वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है

आकार : गोलाकार, व्यास 560 फुट, जिसका घेरा 533 मीटर है. यह लगभग छह एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है. भवन के 12 दरवाज़े हैं. हल्के पीले रंग के 144 खंभे कतार से लगे हैं. प्रत्येक की ऊंचाई 27 फीट है.


चौंसठ योगिनी मंदिर एक नज़र

निर्माण काल : नवीं सदी
स्थान : मितावली, मुरैना (मध्य प्रदेश)
निर्माता : प्रतिहार क्षत्रिय राजा
ख़ासियत : प्राचीन समय में यहां तांत्रिक अनुष्ठान होते थे
आकार : गोलाकार, 101 खंभे कतारबद्ध हैं. यहां 64 कमरे हैं, जहां शिवलिंग स्थापित है.
ऊंचाई : भूमि तल से 300 फीट

ग्राम पंचायत मितावली, थाना रिठौराकलां, ज़िला मुरैना(मध्य प्रदेश) में यह प्राचीन चौंसठ योगिनी शिव मंदिर है. इसे इकंतेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर की ऊंचाई भूमि तल से 300 फीट है. इसका निर्माण तत्कालीन प्रतिहार क्षत्रिय राजाओं ने किया था. यह मंदिर गोलाकार है. इसी गोलाई में बने चौंसठ कमरों में हर एक में एक शिवलिंग स्थापित है. इसके मुख्य परिसर में एक विशाल शिव मंदिर है. भारतीय पुरातत्व विभाग के मुताबिक़, इस मंदिर को नवीं सदी में बनवाया गया था. कभी हर कमरे में भगवान शिव के साथ देवी योगिनी की मूर्तियां भी थीं, इसलिए इसे चौंसठ योगिनी शिवमंदिर भी कहा जाता है. देवी की कुछ मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं. कुछ मूर्तियां देश के विभिन्न संग्रहालयों में भेजी गई हैं. तक़रीबन 200 सीढ़ियां चढ़ने के बाद यहां पहुंचा जा सकता है. यह सौ से ज़्यादा पत्थर के खंभों पर टिका है. किसी ज़माने में इस मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठान किया जाता था. मौजूदा समय में भी यहां कुछ लोग तांत्रिक सिद्धियां हासिल करने के लिए यज्ञ करते हैं.

इसमें कोई शक नहीं कि लुटियंस ने जिस संसद भवन को बनाया, उसकी डिजाइन की चोरी( जिसे सीनाजोरी में ' प्रेरणा' भी कह देते है) उन्हें मुरैना स्थित इस प्राचीन मंदिर से की होगी
अ़फसोस की बात यह है कि इस बात का ज़िक्र न तो हमारी इतिहास की किताबों में दर्ज है और न ही हमारे आधुनिक इतिहासकार इसे पूरी तरह स्वीकार करते हैं. मितावली मंदिर और उसके नज़दीक प्राचीन इमारतों पर अगर शोध कार्य किए जाएं तो परत-दर परत कई अहम जानकारियां प्राप्त होंगी और संसद भवन के निर्माण को लेकर वर्षों से बरक़रार कई ग़लत़फहमियां दूर होंगी. इतिहास में रुचि रखने वालों को चाहिए कि वे इस बारे में रिसर्च करें, ताकि भारतीय संसद जैसे दिखने वाले इस मंदिर के बारे में देश और दुनिया के लोगों को नई एवं सटीक जानकारी मिल सके. ग़ौरतलब है कि भारत में कई ऐसी इमारतें और स्मारक हैं, जिनके निर्माण और शैली को लेकर कई भ्रांतियां फैलाई गई हैं.