Thursday, 3 May 2012

भारतीय स्थापत्य और वास्तुकला के ज्ञान की चोरी करते रहे अंग्रेज

भारतीय स्थापत्य और वास्तुकला के ज्ञान की चोरी करते रहे अंग्रेज
और हम उन्हे महान वास्तुकार मानते रहे ,
आप खुद देखे की सच क्या है ।
भारतीय संसद भवन का वास्तुकार लुटियंस को मानने वाले …देखे जरा की सच क्या है

पिछले साल दिल्ली के 100 साल पूरे हुये . इस जश्न-ए-दिल्ली में सरकारी महकमों से लेकर कई ग़ैर-सरकारी संगठनों ने राजधानी में कई कार्यक्रम आयोजित किए और मशहूर ब्रिटिश वास्तुकार सर एडविन लुटियंस की शान में खूब क़सीदे भी पढ़े. दिल्ली को नई पहचान देने में उनकी अहम भूमिका को याद किया गया. उनके द्वारा बनाई गई इमारतों में अगर सबसे ज़्यादा किसी की चर्चा होती है तो वह संसद भवन है. लेकिन क्या यही आखिरी सच है, शायद नहीं. सच कुछ और भी है, जिसकी अनदेखी पिछले कई दशकों से हो रही है.

मौजूदा संसद भवन और राष्ट्रपति भवन समेत राजधानी की कई बेहतरीन इमारतें सर लुटियंस और उनके सहयोगी हरबर्ट बेकर की देखरेख में बनाई गई थीं. 12 फरवरी, 1921 को मौजूदा संसद भवन की आधारशिला रखी गई थी. इसके निर्माण में छह साल लगे और तब इस पर 83 लाख रुपये की लागत आई थी.
संसद भवन का उद्‌घाटन 18 जनवरी, 1927 को तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड इर्विन ने किया था, लेकिन बहुत कम लोगों को यह पता है कि

**भारतीय संसद के भवन का डिज़ाइन मध्य प्रदेश के नवीं सदी के एक शिव मंदिर पर आधारित है.**

जब भी संसद भवन की बात होती है तो उसमें सर एडविन लुटियंस का ज़िक्र आता है, लेकिन संसद भवन बनाने की प्रेरणा लुटियंस ने जहां से ली, उसकी चर्चा न तो किताबों में है और न ही पार्लियामेंट की वेबसाइट पर. हमारी संजीदा सरकार को यह हक़ीक़त पता हो इसकी संभावना कम है. यहां तक कि दिल्ली गज़ट में भी संसद भवन के निर्माण और उसकी परिकल्पना का पूरा श्रेय लुटियंस को ही दिया गया है.

हालांकि यह बात सही है कि जिस समय संसद भवन का निर्माण हुआ था, उस व़क्त भारत में अंग्रेजों का शासन था. ज़ाहिर है कि ब्रिटिश शासकों ने अपने अभिलेख में संसद भवन के डिज़ाइन को लुटियंस की मौलिक सोच क़रार दिया. अब जबकि देश को आज़ाद हुए 64 साल हो गए,

ऐसे में क्या यह ज़रूरी नहीं है कि हमारी सरकार संसद भवन के निर्माण और सर एडविन लुटियंस की भूमिका की सच्चाई से देश के लोगों को वाक़िफ कराए. दिल्ली के 100 साल पूरे होने पर हमारी सरकार ने भले ही एडविन लुटियंस का महिमामंडन किया हो,
लेकिन आज आप उस हक़ीक़त से रूबरू है, जिसे पिछले 100 वर्षों में न तो हमारे इतिहासकार सामने लाए और न ही हमारी सरकार. एक तऱफ देश के सर्वोच्च प्रतीक संसद की सुरक्षा और सुंदरता पर हर साल करोड़ों रुपये ख़र्च किए जाते हैं, लेकिन संसद भवन बनाने की प्रेरणा नवीं सदी में निर्मित जिस चौंसठ योगिनी शिव मंदिर मितावली से ली गई उसके प्रति हमारी सरकार तनिक भी गंभीर नहीं है. यही वजह है कि सैकड़ों साल पुराना यह ऐतिहासिक मंदिर अपनी पहचान की लड़ाई लड़ रहा है.


संसद भवन एक नज़र

निर्माण वर्ष : 1921-1927 के बीच
स्थान : नई दिल्ली
निर्माता : ब्रिटिश वास्तुविद सर एडविन लुटियंस और हरबर्ट बेकर

ख़ासियत : यह विश्व के किसी भी देश में विद्यमान वास्तुकला का एक बेहतरीन नमूना है

आकार : गोलाकार, व्यास 560 फुट, जिसका घेरा 533 मीटर है. यह लगभग छह एकड़ क्षेत्र में फैला हुआ है. भवन के 12 दरवाज़े हैं. हल्के पीले रंग के 144 खंभे कतार से लगे हैं. प्रत्येक की ऊंचाई 27 फीट है.


चौंसठ योगिनी मंदिर एक नज़र

निर्माण काल : नवीं सदी
स्थान : मितावली, मुरैना (मध्य प्रदेश)
निर्माता : प्रतिहार क्षत्रिय राजा
ख़ासियत : प्राचीन समय में यहां तांत्रिक अनुष्ठान होते थे
आकार : गोलाकार, 101 खंभे कतारबद्ध हैं. यहां 64 कमरे हैं, जहां शिवलिंग स्थापित है.
ऊंचाई : भूमि तल से 300 फीट

ग्राम पंचायत मितावली, थाना रिठौराकलां, ज़िला मुरैना(मध्य प्रदेश) में यह प्राचीन चौंसठ योगिनी शिव मंदिर है. इसे इकंतेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है. इस मंदिर की ऊंचाई भूमि तल से 300 फीट है. इसका निर्माण तत्कालीन प्रतिहार क्षत्रिय राजाओं ने किया था. यह मंदिर गोलाकार है. इसी गोलाई में बने चौंसठ कमरों में हर एक में एक शिवलिंग स्थापित है. इसके मुख्य परिसर में एक विशाल शिव मंदिर है. भारतीय पुरातत्व विभाग के मुताबिक़, इस मंदिर को नवीं सदी में बनवाया गया था. कभी हर कमरे में भगवान शिव के साथ देवी योगिनी की मूर्तियां भी थीं, इसलिए इसे चौंसठ योगिनी शिवमंदिर भी कहा जाता है. देवी की कुछ मूर्तियां चोरी हो चुकी हैं. कुछ मूर्तियां देश के विभिन्न संग्रहालयों में भेजी गई हैं. तक़रीबन 200 सीढ़ियां चढ़ने के बाद यहां पहुंचा जा सकता है. यह सौ से ज़्यादा पत्थर के खंभों पर टिका है. किसी ज़माने में इस मंदिर में तांत्रिक अनुष्ठान किया जाता था. मौजूदा समय में भी यहां कुछ लोग तांत्रिक सिद्धियां हासिल करने के लिए यज्ञ करते हैं.

इसमें कोई शक नहीं कि लुटियंस ने जिस संसद भवन को बनाया, उसकी डिजाइन की चोरी( जिसे सीनाजोरी में ' प्रेरणा' भी कह देते है) उन्हें मुरैना स्थित इस प्राचीन मंदिर से की होगी
अ़फसोस की बात यह है कि इस बात का ज़िक्र न तो हमारी इतिहास की किताबों में दर्ज है और न ही हमारे आधुनिक इतिहासकार इसे पूरी तरह स्वीकार करते हैं. मितावली मंदिर और उसके नज़दीक प्राचीन इमारतों पर अगर शोध कार्य किए जाएं तो परत-दर परत कई अहम जानकारियां प्राप्त होंगी और संसद भवन के निर्माण को लेकर वर्षों से बरक़रार कई ग़लत़फहमियां दूर होंगी. इतिहास में रुचि रखने वालों को चाहिए कि वे इस बारे में रिसर्च करें, ताकि भारतीय संसद जैसे दिखने वाले इस मंदिर के बारे में देश और दुनिया के लोगों को नई एवं सटीक जानकारी मिल सके. ग़ौरतलब है कि भारत में कई ऐसी इमारतें और स्मारक हैं, जिनके निर्माण और शैली को लेकर कई भ्रांतियां फैलाई गई हैं.

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