Saturday, 28 September 2013

गुरुत्वाकर्षण (Gravity) के खोजकर्ता - भास्कराचार्य द्वितीय (Bhaskar II)

आधी सदी से चली आ रही मैकाले शिक्षा पद्धति के परिणामस्वरूप जब भी गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत की बात की जाती है, तब हमेशा न्यूटन वाले सेब का नाम लेकर हमेशा की तरह महान सनातनी वैज्ञानिक इतिहास को नीचा दिखाने का प्रयास किया जाता है.

न्यूटन से ५०० वर्ष पूर्व ही महान भारतीय गणितज्ञ, ज्योतिषी एवं खगोलविद्, भास्कराचार्य ने गुरुत्वाकर्षण की खोज व संपूर्ण सैद्धांतिक अवधारणा प्रस्तुत कर दी थी.

भास्कराचार्यजी ने अपने सुप्रसिद्ध ग्रन्थ ‘सिद्धांतशिरोमणि’ पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि - "पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस वजह से आकाशीय पदार्थ पृथ्वी पर गिरता है"

इनका जन्म १११४ ई. में, दक्षिण भारत के एक गाँव में हुआ था। उन्होंने ज्योतिष, खगोल व गणित का ज्ञान अपने मनीषी पिता से प्राप्त किया था.

भास्कराचार्य की सबसे अप्रतिम रचना ‘सिद्धांतशिरोमणि’ नामक ग्रन्थ है एवं इस ग्रन्थ में सबसे अधिक प्रसिद्ध तथा चर्चित भाग है "लीलावती".

लीलावती, भास्कराचार्य की पुत्री का नाम था। अपनी पुत्री के नाम पर ही उन्होंने इस ग्रन्थ का नाम लीलावती रखा। यह पुस्तक पिता-पुत्री संवाद के रूप में लिखी गयी है। लीलावती में बड़े ही सरल और काव्यात्मक तरीके से गणित और खगोल शास्त्र के सूत्रों को समझाया गया है। इस ग्रन्थ में पाटीगणित (अंकगणित), बीजगणित और ज्यामिति के प्रश्न एवं उनके उत्तर हैं। प्रश्न प्रायः लीलावती को ही सम्बोधित करके पूछे गये हैं। एक महत्त्वपूर्ण बात लीलावती में एक अध्याय है जिसका नाम है कुट्टक. आज के Diophantine Equation इसी कुट्टक अध्याय पर आधारित हैं. या कह सकते है की पूरे के पूरे समीकरण इसी अध्याय से कॉपी किये गए है.

वास्तव में ‘सिद्धांतशिरोमणि’ चार भागों से मिलकर बना हुआ विशाल ग्रन्थ है. जो क्रमशः

(1) लीलावती

(2) बीजगणित

(3) गोलाध्याय और

(4) ग्रहगणिताध्याय से मिलकर बना है. (प्रथम दो स्वतंत्र ग्रन्थ है तथा अंतिम दो सिद्धांतशिरोमणि के नाम से जाने जाते है)

अब मुख्य कथन पर आते है.

भास्कराचार्य ने तीसरे भाग गोलाध्याय में लिखा है -

"मरुच्लो भूरचला स्वभावतो यतो,
विचित्रावतवस्तु शक्त्य:।।
आकृष्टिशक्तिश्च मही तया यत्,
खस्थं,गुरुस्वाभिमुखं स्वशक्तत्या।
आकृष्यते तत्पततीव भाति,
समेसमन्तात् क्व पतत्वियं खे।।" - सिद्धांतशिरोमणि (गोलाध्याय - भुवनकोश)

अर्थात् - पृथ्वी में आकर्षण (गुरुत्वाकर्षण) शक्ति है। पृथ्वी अपनी आकर्षण शक्ति से भारी पदार्थों को अपनी ओर खींचती है और आकर्षण के कारण वह जमीन पर गिरते हैं। पर जब आकाश में समान ताकत चारों ओर से लगे, तो कोई कैसे गिरे? अर्थात् आकाश में ग्रह निरावलम्ब रहते हैं क्योंकि विविध ग्रहों की गुरुत्व शक्तियाँ संतुलन बनाए रखती हैं।

यहाँ पर भास्कराचार्य ने सापेक्षता के सिद्धांत की भी एक झलक दिखा दी है जिसका वर्णन आइंस्टीन ने २० वीं सदी में जाकर किया :

यह कहा जाये की विज्ञान के सारे आधारभूत आविष्कार भारत भूमि पर हमारे ऋषि मुनियों द्वारा हुए तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी.

भास्कराचार्य ने करणकौतूहल नामक एक दूसरे ग्रन्थ की भी रचना की थी। ये अपने समय के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ थे। वे उज्जैन की वेधशाला के अध्यक्ष भी थे। उन्हें "मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ" कहा जाता है.

वे एक मौलिक विचारक भी थे। वह प्रथम गणितज्ञ थे जिन्होनें पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा था कि - "कोई संख्या जब शून्य से विभक्त की जाती है तो अनंत हो जाती है। किसी संख्या और अनंत का जोड़ भी अंनत होता है।"

इसके अलावा भास्कराचार्य ने वासनाभाष्य (सिद्धान्तशिरोमणि का भाष्य) तथा भास्कर व्यवहार और भास्कर विवाह पटल नामक दो ज्योतिष ग्रंथ लिखे हैं। इनके सिद्धांत शिरोमणि से ही भारतीय ज्योतिष शास्त्र का सम्यक् तत्व जाना जा सकता है।

सर्वप्रथम इन्होंने ही अंकगणितीय क्रियाओं का अपरिमेय राशियों में प्रयोग किया। गणित को इनकी सर्वोत्तम देन चक्रीय विधि द्वारा आविष्कृत, अनिश्चित एकघातीय और वर्ग समीकरण के व्यापक हल हैं। भास्कराचार्य के ग्रंथ की अन्यान्य नवीनताओं में त्रिप्रश्नाधिकार की नई रीतियाँ, उदयांतर काल का स्पष्ट विवेचन आदि है।

भास्करचार्य को अनंत तथा कलन के कुछ सूत्रों का भी ज्ञान था। इनके अतिरिक्त इन्होंने किसी फलन के अवकल को "तात्कालिक गति" का नाम दिया और सिद्ध किया कि -

d (ज्या q) = (कोटिज्या q) . dq

जैसे की पहले ही लिख चुका हूँ की न्यूटन के जन्म के आठ सौ वर्ष पूर्व ही इन्होंने अपने गोलाध्याय में 'माध्यकर्षणतत्व' के नाम से गुरुत्वाकर्षण के नियमों की विवेचना की है। ये प्रथम व्यक्ति हैं, जिन्होंने दशमलव प्रणाली की क्रमिक रूप से व्याख्या की है। इनके ग्रंथों की कई टीकाएँ हो चुकी हैं तथा देशी और विदेशी बहुत सी भाषाओं में इनके अनुवाद हो चुके हैं।

इनकी पुस्तक करणकुतूहल में खगोल विज्ञान की गणना है। इसका प्रयोग आज भी पंचाग बनाने में किया जाता है.

  विमान शास्त्र की रचना करने वाले महर्षि भारद्वाज को गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत के बारे में पता न हो ये हो ही नही सकता क्योंकि किसी भी वस्तु को उड़ाने के लिए पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति का विरोध करना अनिवार्य है। जब तक कोई व्यक्ति गुरुत्वाकर्षण को पूरी तरह नही जान ले उसके लिए विमान शास्त्र जैसे ग्रन्थ का निर्माण करना संभव ही नही | अतएव गुरुत्वाकर्षण की खोज न्यूटन से हजारों वर्ष पूर्व ही की जा चुकी थी]

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