Wednesday, 12 June 2013

मोहम्मद गज़नवी भारत का प्रथम आतंकवादी ...

मोहम्मद गज़नवी भारत का प्रथम इस्लामीक आतंकवादी ...
गज़नवी ने भारत में किये जिहाद का वर्णन निचे उसके प्रधानमंत्री द्वारा लिखी पुस्तक के संदर्भ के साथ पढे.. भारत के विरुद्ध सुल्तान महमूद के जिहाद का वर्णन उसके प्रधानमंत्री अल- उत्बी द्वारा बड़ी सूक्ष्म सूचनाओं के साथ भी किया गया है और बाद में एलियट और डाउसन द्वारा अंग्रेजी में अनुवाद करके अपने ग्रन्थ, ‘दी स्टोरी ऑफ इण्डिया एज़ टोल्ड बाइ इट्स ओन हिस्टोरियन्स, के खण्ड २ में उपलब्ध कराया गया है।’ पुरुद्गापुर (पेशावर) में जिहाद अल-उत्बी ने लिखा- ‘अभी मध्याह भी नहीं हुआ थाकि मुसलमानों ने ‘अल्लाह के शत्रु’, हिन्दुओं के .विरुद्ध बदला लिया और उनमें से पन्द्रह हजार को काट कर कालीन की भाँति भूमि पर बिछा दिया ताकि शिकारी जंगली जानवर और पक्षी उन्हें अपने भोजन के रूप् मेंखा सकें। अल्लाह ने कृपा कर हमें लूट का इतना माल दिलाया है कि वह गिनती की सभी सीमाओं से परे है यानि कि अनगिनत है जिसमें पाँच लाख दास, सुन्दर पुरुष और महिलायें हैं। यह ‘महान’ और ‘शोभनीय’ कार्य वृहस्पतिवार मुहर्रम की आठवी ३९२ हिजरी (२७.११.१००१) को हुआ’ (अल-उत्बी-की तारीख-ई-यामिनी, एलियट और डाउसनखण्ड पृष्ठ २७) नन्दना की लूट अल-उत्बी ने लिखा- ‘जब सुल्तान ने हिन्द को मूर्ति पूजा से मुक्त कर दिया था, और उनके स्थान पर मस्जिदें खड़ी कर दी थीं, उसके बाद उसने उन लोगों को, जिनके पास .मूर्तियाँ थीं, दण्ड देने का निश्चय किया। असंखय, असीमित व अतुल लूट के माल और दासों के साथ सुल्तान लौटा। ये सब इतने अधिक थे कि इनका मूल्य बहुतघट गया और वे बहुत सस्ते हो गये; और अपने मूल निवास स्थान में इन अति सम्माननीय व्यक्तियों को अपमानित किया गया कि वे मामूली दूकानदारों के दास बना दिये गये। किन्तु यह अल्लाह की कृपा ही है उसका उपकार ही है कि वह अपने पन्थ को सम्मान देता है और गैर मुसलमानों को अपमान देता है।’ (उसी पुस्तक में पृष्ठ ३९) थानेश्वर में (कत्लेआम) नरसंहार अल-उत्बी लिपि बद्ध करता है- ‘इस कारण से थानेश्वर का सरदार अपने अविश्वास में-अल्लाह की अस्वीकृति में-उद्धत था। अतः सुल्तान उसके विरुद्ध अग्रसर हुआ ताकि वह इस्लाम की वास्तविकता का माप दण्ड स्थापित कर सके और .मूर्ति पूजा का मूलोच्छेदन कर सके। गैर-मुसलमानों (हिन्दु बौद्ध आदि) का रक्त इस प्रचुरता, आधिक्य व बहुलता से बहा कि नदी के पानी का रंग परिवर्तित हो गया और लोग उसे पी न सके। यदि रात्रि न हुई होती और प्राण बचाकर भागने वाले हिन्दुओं के भागने के चिह्न भी गायब न हो गये होते तो न जाने कितने और शत्रुओं का वध हो गया होता। अल्लाह की कृपा से विजय प्राप्त हुई जिसने सर्वश्रेष्ठ पन्थ, इस्लाम, की सदैव के लिए स्थापना की (उसी पुस्तक में पृष्ठ ४०-४१) फरिश्ता के मतानुसार, ‘मुहम्मद की सेना, गजनी में, दो लाख बन्दी लाई थी जिसके कारण गजनी एक भारतीय शहर की भाँति लगता था क्योंकि हर एक सैनिक अपने साथ अनेकों दास व दासियाँ लाया था। (फरिश्ता : एलियट और डाउसन – खण्ड I पृष्ठ २८) सिरासवा में नर संहार अल-उत्बी आगे लिखता है- ‘सुल्तान ने अपने सैनिकों को तुरन्त आक्रमण करने का आदेश् दिया। परिणामस्वरूप अनेकों गैर-मुसलमान बन्दी बना लिये गये और मुसलमानों ने लूट के मालकी तब तक कोई चिन्ता नहीं की जब तक उन्होंने अविश्वासियों, (हिन्दुओं) सूर्य व अग्नि के उपासकों का अनन्त वध करके अपनी भूख पूरी तरह न बुझा ली। लूट का माल खोजने के लिए अल्लाह के मित्रों ने पूरे तीन दिनों तक वध किये हुए अविश्वासियों (हिन्दुओं) के शवों की तलाशी ली बन्दी बनाये गये व्यक्तियों की संखया का अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि प्रत्येक दास दो से लेकर दस दिरहम तक में बिका था। बाद में इन्हें गजनी ले जाया गया और बड़ी दूर-दूर के शहरों से व्यापारी इन्हें खरीदने आये थे। गोरे और काले, धनी और निर्धन, दासता के एक समान बन्धन में, सभी को मिश्रित कर दिया गया।’ (अल-उत्बी : एलियट और डाउसन – खण्ड ii पृष्ठ ४९-५०) अल-बरूनी ने लिखा था- ‘महमूद ने भारती की सम्पन्नता को पूरी तरह विध्वस ... .कर दिया। इतनाआश्चर्यजनक शोषण व विध्वंस किया था कि हिन्दू धूल के कणों की भाँति चारों ओर बिखर गये थे। उनके बिखरे हुए अवशेष निश्चय ही मुसलमानों की चिरकालीन प्राणलेवा, अधिकतम घृणा को पोषित कर रहे थे।’ (अलबरूनी-तारीख-ई-हिन्द अनु. अल्बरुनीज़ इण्डिया, बाई ऐडवर्ड सचाउ, लन्दन, १९१०) सोमनाथ की लूट ‘सुल्तान ने मन्दिर में विजयपूर्वक प्रवेश किया, शिवलिंग को टुकड़े-टुकड़े कर तोड़ दिया, जितने में समाधान हुआ उतनी सम्पत्ति कोआधिपत्य में कर लिया। वह सम्पत्ति अनुमानतः दो करोड़ दिरहम थी। बाद में मन्दिर का पूर्ण विध्वंस कर, चूरा कर, भूमि में मिला दिया, शिवलिंग के टुकड़ों को गजनी ले गया, जिन्हें जामी मस्जिद की सीढ़ियों के लिए प्रयोग किया’ (तारीख-ई-जैम-उल-... ..मासीर, दी स्ट्रगिल फौर ऐम्पायर-भारतीय विद्या भवन पृष्ठ २०-२१) मुहम्मद गौरी (११७३-१२०६) हसन निज़ामी ने अपने ऐतिहासिक लेख, ‘ताज-उल-मासीर’, में मुहम्मद गौरी के व्यक्तितव और उसके द्वारा भारत के बलात् विजय का विस्तृतवर्णन किया है। युद्धों की आवश्यकता और लाभ के वर्णन, जिसके बिना मुहम्मद का रेवड़ अधूरा रह जाता है अर्थात् उसका अहंकार पूरा नहीं होता, के बादहसन निज़ामी ने कहा ‘कि पन्थ के दायित्वों के निर्वाह के लिए जैसा वीर पुरुष चाहिए वह, सुल्तानों के सुल्तान अविश्वासियों और बहु देवता पूजकों के विध्वंसक, मुहम्मद गौरी के शासन में उपलब्ध हुआ; और उसे अल्लाह ने उस समय के राजाओं और शहंशाहों में से छांटा था, ‘क्योंकि उसने अपने आपको पन्थ के शत्रु.के मूलोच्छदन एवं सवंश् विनाश के लिए नियुक्त किया था। उनके हदयों के रक्त से भारत भूमि कोइतना भर दिया था, कि कयामत के दिन तक यात्रियों को नाव में बैठकर उस गाढ़े खून की भरपूर नदी को पार करना पड़ेगा। उसने जिस किले पर आक्रमण किया उसे जीत लिया, मिट्टी में मिला दिया और उस (किले) की नींव व खम्मों को हाथियों के पैरों के नीचे रोंद कर भस्मसात कर दिया; और मूर्ति पूजकों के सारे विश्व को अपनी अच्छी धार वाली तलवार से काट कर नर्क की अग्नि में झोंक दिया;और मंदिरों की जगह मस्जिद बनवा दी!!

मदर टेरेसा-----“संत” या "धोखेबाज"

एग्नेस गोंक्झा बोज़ाझियू अर्थात मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को स्कोप्जे, मेसेडोनिया में हुआ था और बारह वर्ष की आयु में उन्हें अहसास हुआ कि “उन्हें ईश्वर बुला रहा है”। 24 मई 1931 को वे कलकत्ता आईं और फ़िर यहीं की होकर रह गईं। उनके बारे में इस प्रकार की सारी बातें लगभग सभी लोग जानते हैं, लेकिन कुछ ऐसे तथ्य, आँकड़े और लेख हैं जिनसे इस शख्सियत पर सन्देह के बादल गहरे होते जाते हैं। उन पर हमेशा वेटिकन की मदद और मिशनरीज ऑफ़ चैरिटी की मदद से “धर्म परिवर्तन” का आरोप तो लगता ही रहा है, लेकिन बात कुछ और भी है, जो उन्हें “दया की मूर्ति”, “मानवता की सेविका”, “बेसहारा और गरीबों की मसीहा”… आदि वाली “लार्जर दैन लाईफ़” छवि पर ग्रहण लगाती हैं, और मजे की बात यह है कि इनमें से अधिकतर आरोप (या कहें कि खुलासे) पश्चिम की प्रेस या ईसाई पत्रकारों आदि ने ही किये हैं, ना कि किसी हिन्दू संगठन ने, जिससे संदेह और भी गहरा हो जाता है (क्योंकि हिन्दू संगठन जो भी बोलते या लिखते हैं उसे तत्काल सांप्रदायिक ठहरा दिये जाने का “रिवाज” है)। बहरहाल, आईये देखें कि क्यों इस प्रकार के “संत” या “चमत्कार” आदि की बातें बेमानी होती हैं (अब ये पढ़ते वक्त यदि आपको हिन्दुओं के बड़े-बड़े और नामी-गिरामी बाबाओं, संतों और प्रवचनकारों की याद आ जाये तो कोई आश्चर्यजनक बात नहीं होगी) –

यह बात तो सभी जानते हैं कि धर्म कोई सा भी हो, धार्मिक गुरु/गुरुआनियाँ/बाबा/सन्त आदि कोई भी हो बगैर “चन्दे” के वे अपना कामकाज(?) नहीं फ़ैला सकते हैं। उनकी मिशनरियाँ, उनके आश्रम, बड़े-बड़े पांडाल, भव्य मन्दिर, मस्जिद और चर्च आदि इसी विशालकाय चन्दे की रकम से बनते हैं। जाहिर है कि जहाँ से अकूत पैसा आता है वह कोई पवित्र या धर्मात्मा व्यक्ति नहीं होता, ठीक इसी प्रकार जिस जगह ये अकूत पैसा जाता है, वहाँ भी ऐसे ही लोग बसते हैं। आम आदमी को बरगलाने के लिये पाप-पुण्य, अच्छाई-बुराई, धर्म आदि की घुट्टी लगातार पिलाई जाती है, क्योंकि जिस अंतरात्मा के बल पर व्यक्ति का सारा व्यवहार चलता है, उसे दरकिनार कर दिया जाता है। पैसा (यानी चन्दा) कहीं से भी आये, किसी भी प्रकार के व्यक्ति से आये, उसका काम-धंधा कुछ भी हो, इससे लेने वाले “महान”(?) लोगों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता। उन्हें इस बात की चिंता कभी नहीं होती कि उनके तथाकथित प्रवचन सुनकर क्या आज तक किसी भी भ्रष्टाचारी या अनैतिक व्यक्ति ने अपना गुनाह कबूल किया है? क्या किसी पापी ने आज तक यह कहा है कि “मेरी यह कमाई मेरे तमाम काले कारनामों की है, और मैं यह सारा पैसा त्यागकर आज से सन्यास लेता हूँ और मुझे मेरे पापों की सजा के तौर पर कड़े परिश्रम वाली जेल में रख दिया जाये..”। वह कभी ऐसा कहेगा भी नहीं, क्योंकि इन्हीं संतों और महात्माओं ने उसे कह रखा है कि जब तुम अपनी कमाई का कुछ प्रतिशत “नेक” कामों के लिये दान कर दोगे तो तुम्हारे पापों का खाता हल्का हो जायेगा। यानी, बेटा..तू आराम से कालाबाजारी कर, चैन से गरीबों का शोषण कर, जम कर भ्रष्टाचार कर, लेकिन उसमें से कुछ हिस्सा हमारे आश्रम को दान कर… है ना मजेदार धर्म…

बहरहाल बात हो रही थी मदर टेरेसा की, मदर टेरेसा की मृत्यु के समय सुसान शील्ड्स को न्यूयॉर्क बैंक में पचास मिलियन डालर की रकम जमा मिली, सुसान शील्ड्स वही हैं जिन्होंने मदर टेरेसा के साथ सहायक के रूप में नौ साल तक काम किया, सुसान ही चैरिटी में आये हुए दान और चेकों का हिसाब-किताब रखती थीं। जो लाखों रुपया गरीबों और दीन-हीनों की सेवा में लगाया जाना था, वह न्यूयॉर्क के बैंक में यूँ ही फ़ालतू पड़ा था? मदर टेरेसा को समूचे विश्व से, कई ज्ञात और अज्ञात स्रोतों से बड़ी-बड़ी धनराशियाँ दान के तौर पर मिलती थीं।

अमेरिका के एक बड़े प्रकाशक रॉबर्ट मैक्सवैल, जिन्होंने कर्मचारियों की भविष्यनिधि फ़ण्ड्स में 450 मिलियन पाउंड का घोटाला किया, ने मदर टेरेसा को 1.25 मिलियन डालर का चन्दा दिया। मदर टेरेसा मैक्सवैल के भूतकाल को जानती थीं। हैती के तानाशाह जीन क्लाऊड डुवालिये ने मदर टेरेसा को सम्मानित करने बुलाया। मदर टेरेसा कोलकाता से हैती सम्मान लेने गईं, और जिस व्यक्ति ने हैती का भविष्य बिगाड़ कर रख दिया, गरीबों पर जमकर अत्याचार किये और देश को लूटा, टेरेसा ने उसकी “गरीबों को प्यार करने वाला” कहकर तारीफ़ों के पुल बाँधे।

मदर टेरेसा को चार्ल्स कीटिंग से 1.25 मिलियन डालर का चन्दा मिला, ये कीटिंग महाशय वही हैं जिन्होंने “कीटिंग सेविंग्स एन्ड लोन्स” नामक कम्पनी 1980 में बनाई थी और आम जनता और मध्यमवर्ग को लाखों डालर का चूना लगाने के बाद उसे जेल हुई थी। अदालत में सुनवाई के दौरान मदर टेरेसा ने जज से कीटिंग को “माफ़”(?) करने की अपील की थी, उस वक्त जज ने उनसे कहा कि जो पैसा कीटिंग ने गबन किया है क्या वे उसे जनता को लौटा सकती हैं? ताकि निम्न-मध्यमवर्ग के हजारों लोगों को कुछ राहत मिल सके, लेकिन तब वे चुप्पी साध गईं।

ब्रिटेन की प्रसिद्ध मेडिकल पत्रिका Lancet के सम्पादक डॉ.रॉबिन फ़ॉक्स ने 1991 में एक बार मदर के कलकत्ता स्थित चैरिटी अस्पतालों का दौरा किया था। उन्होंने पाया कि बच्चों के लिये साधारण “अनल्जेसिक दवाईयाँ” तक वहाँ उपलब्ध नहीं थीं और न ही “स्टर्लाइज्ड सिरिंज” का उपयोग हो रहा था। जब इस बारे में मदर से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि “ये बच्चे सिर्फ़ मेरी प्रार्थना से ही ठीक हो जायेंगे…”(?)

बांग्लादेश युद्ध के दौरान लगभग साढ़े चार लाख महिलायें बेघरबार हुईं और भागकर कोलकाता आईं, उनमें से अधिकतर के साथ बलात्कार हुआ था। मदर टेरेसा ने उन महिलाओं के गर्भपात का विरोध किया था, और कहा था कि “गर्भपात कैथोलिक परम्पराओं के खिलाफ़ है और इन औरतों की प्रेग्नेन्सी एक “पवित्र आशीर्वाद” है…”। उन्होंने हमेशा गर्भपात और गर्भनिरोधकों का विरोध किया। जब उनसे सवाल किया जाता था कि “क्या ज्यादा बच्चे पैदा होना और गरीबी में कोई सम्बन्ध नहीं है?” तब उनका उत्तर हमेशा गोलमोल ही होता था कि “ईश्वर सभी के लिये कुछ न कुछ देता है, जब वह पशु-पक्षियों को भोजन उपलब्ध करवाता है तो आने वाले बच्चे का खयाल भी वह रखेगा इसलिये गर्भपात और गर्भनिरोधक एक अपराध है” (क्या अजीब थ्योरी है…बच्चे पैदा करते जाओं उन्हें “ईश्वर” पाल लेगा… शायद इसी थ्योरी का पालन करते हुए ज्यादा बच्चों का बाप कहता है कि “ये तो भगवान की देन हैं..”, लेकिन वह मूर्ख नहीं जानता कि यह “भगवान की देन” धरती पर बोझ है और सिकुड़ते संसाधनों में हक मारने वाला एक और मुँह…)

मदर टेरेसा ने इन्दिरा गाँधी की आपातकाल लगाने के लिये तारीफ़ की थी और कहा कि “आपातकाल लगाने से लोग खुश हो गये हैं और बेरोजगारी की समस्या हल हो गई है”। गाँधी परिवार ने उन्हें “भारत रत्न” का सम्मान देकर उनका “ऋण” उतारा। भोपाल गैस त्रासदी भारत की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना है, जिसमें सरकारी तौर पर 4000 से अधिक लोग मारे गये और लाखों लोग अन्य बीमारियों से प्रभावित हुए। उस वक्त मदर टेरेसा ताबड़तोड़ कलकत्ता से भोपाल आईं, किसलिये? क्या प्रभावितों की मदद करने? जी नहीं, बल्कि यह अनुरोध करने कि यूनियन कार्बाईड के मैनेजमेंट को माफ़ कर दिया जाना चाहिये। और अन्ततः वही हुआ भी, वारेन एंडरसन ने अपनी बाकी की जिन्दगी अमेरिका में आराम से बिताई, भारत सरकार हमेशा की तरह किसी को सजा दिलवा पाना तो दूर, ठीक से मुकदमा तक नहीं कायम कर पाई। प्रश्न उठता है कि आखिर मदर टेरेसा थीं क्या?

एक और जर्मन पत्रकार वाल्टर व्युलेन्वेबर ने अपनी पत्रिका “स्टर्न” में लिखा है कि अकेले जर्मनी से लगभग तीन मिलियन डालर का चन्दा मदर की मिशनरी को जाता है, और जिस देश में टैक्स चोरी के आरोप में स्टेफ़ी ग्राफ़ के पिता तक को जेल हो जाती है, वहाँ से आये हुए पैसे का आज तक कोई ऑडिट नहीं हुआ कि पैसा कहाँ से आता है, कहाँ जाता है, कैसे खर्च किया जाता है… आदि।

अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पत्रकार क्रिस्टोफ़र हिचेन्स ने 1994 में एक डॉक्यूमेंट्री बनाई थी, जिसमें मदर टेरेसा के सभी क्रियाकलापों पर विस्तार से रोशनी डाली गई थी, बाद में यह फ़िल्म ब्रिटेन के चैनल-फ़ोर पर प्रदर्शित हुई और इसने काफ़ी लोकप्रियता अर्जित की। बाद में अपने कोलकाता प्रवास के अनुभव पर उन्होंने एक किताब भी लिखी “हैल्स एन्जेल” (नर्क की परी)। इसमें उन्होंने कहा है कि “कैथोलिक समुदाय विश्व का सबसे ताकतवर समुदाय है, जिन्हें पोप नियंत्रित करते हैं, चैरिटी चलाना, मिशनरियाँ चलाना, धर्म परिवर्तन आदि इनके मुख्य काम हैं…” जाहिर है कि मदर टेरेसा को टेम्पलटन सम्मान, नोबल सम्मान, मानद अमेरिकी नागरिकता जैसे कई सम्मान मिले।

संतत्व गढ़ना –
मदर टेरेसा जब कभी बीमार हुईं, उन्हें बेहतरीन से बेहतरीन कार्पोरेट अस्पताल में भरती किया गया, उन्हें हमेशा महंगा से महंगा इलाज उपलब्ध करवाया गया, हालांकि ये अच्छी बात है, इसका स्वागत किया जाना चाहिये, लेकिन साथ ही यह नहीं भूलना चाहिये कि यही उपचार यदि वे अनाथ और गरीब बच्चों (जिनके नाम पर उन्हें लाखों डालर का चन्दा मिलता रहा) को भी दिलवातीं तो कोई बात होती, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ…एक बार कैंसर से कराहते एक मरीज से उन्होंने कहा कि “तुम्हारा दर्द ठीक वैसा ही है जैसा ईसा मसीह को सूली पर हुआ था, शायद महान मसीह तुम्हें चूम रहे हैं”,,, तब मरीज ने कहा कि “प्रार्थना कीजिये कि जल्दी से ईसा मुझे चूमना बन्द करें…”। टेरेसा की मृत्यु के पश्चात पोप जॉन पॉल को उन्हें “सन्त” घोषित करने की बेहद जल्दबाजी हो गई थी, संत घोषित करने के लिये जो पाँच वर्ष का समय (चमत्कार और पवित्र असर के लिये) दरकार होता है, पोप ने उसमें भी ढील दे दी, ऐसा क्यों हुआ पता नहीं।

मोनिका बेसरा की कहानी –
पश्चिम बंगाल की एक क्रिश्चियन आदिवासी महिला जिसका नाम मोनिका बेसरा है, उसे टीबी और पेट में ट्यूमर हो गया था। बेलूरघाट के सरकारी अस्पताल के डॉ. रंजन मुस्ताफ़ उसका इलाज कर रहे थे। उनके इलाज से मोनिका को काफ़ी फ़ायदा हो रहा था और एक बीमारी लगभग ठीक हो गई थी। मोनिका के पति मि. सीको ने इस बात को स्वीकार किया था। वे बेहद गरीब हैं और उनके पाँच बच्चे थे, कैथोलिक ननों ने उनसे सम्पर्क किया, बच्चों की उत्तम शिक्षा-दीक्षा का आश्वासन दिया, उस परिवार को थोड़ी सी जमीन भी दी और ताबड़तोड़ मोनिका का “ब्रेनवॉश” किया गया, जिससे मदर टेरेसा के “चमत्कार” की कहानी दुनिया को बताई जा सके और उन्हें संत घोषित करने में आसानी हो। अचानक एक दिन मोनिका बेसरा ने अपने लॉकेट में मदर टेरेसा की तस्वीर देखी और उसका ट्यूमर पूरी तरह से ठीक हो गया। जब एक चैरिटी संस्था ने उस अस्पताल का दौरा कर हकीकत जानना चाही, तो पाया गया कि मोनिका बेसरा से सम्बन्धित सारा रिकॉर्ड गायब हो चुका है (“टाईम” पत्रिका ने इस बात का उल्लेख किया है)।

“संत” घोषित करने की प्रक्रिया में पहली पायदान होती है जो कहलाती है “बीथिफ़िकेशन”, जो कि 19 अक्टूबर 2003 को हो चुका। “संत” घोषित करने की यह परम्परा कैथोलिकों में बहुत पुरानी है, लेकिन आखिर इसी के द्वारा तो वे लोगों का धर्म में विश्वास(?) बरकरार रखते हैं और सबसे बड़ी बात है कि वेटिकन को इतने बड़े खटराग के लिये सतत “धन” की उगाही भी तो जारी रखना होता है….

(मदर टेरेसा की जो “छवि” है, उसे धूमिल करने का मेरा कोई इरादा नहीं है, इसीलिये इसमें सन्दर्भ सिर्फ़ वही लिये गये हैं जो पश्चिमी लेखकों ने लिखे हैं, क्योंकि भारतीय लेखकों की आलोचना का उल्लेख करने भर से “सांप्रदायिक” घोषित किये जाने का “फ़ैशन” है… इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को चोट पहुँचाना नहीं है, जो कुछ पहले बोला, लिखा जा चुका है उसे ही संकलित किया गया है, मदर टेरेसा द्वारा किया गया सेवाकार्य अपनी जगह है, लेकिन सच यही है कि कोई भी धर्म हो इस प्रकार की “हरकतें” होती रही हैं, होती रहेंगी, जब तक कि आम जनता अपने कर्मों पर विश्वास करने की बजाय बाबाओं, संतों, माताओं, देवियों आदि के चक्करों में पड़ी रहेगी, इसीलिये यह दूसरा पक्ष प्रस्तुत किया गया है)

सन्दर्भ – महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति साहित्य (डॉ. इन्नैय्या नरिसेत्ति)

Wednesday, 17 April 2013

दशरथ मांझी, एक आदमी जिसने एक पर्वत को हटा दिया !!!


दशरथ मांझी, एक आदमी जिसने एक पर्वत को हटा दिया !!!
"जब मैं पहाड़ पर हतोड़ा चलाना शुरू कर दिया, लोगों ने कहा यह पागल है, लेकिन उससे मेरा संकल्प और दृड़ हो गया" - दशरथ मांझी ।

लगभग पांच दशक पहले गया के गहलोर घाटी (बिहार का एक जिला) की एक भूमिहीन किसान दशरथ मांझी ने अपने ग्रामीणों की कठिनाइयों को समाप्त करने के लिए 300 फुट ऊंची एक पहाड़ को काट के एक किलोमीटर मार्ग बनाने जैसा एक असंभव कार्य करने का संकल्प किया।

उनके गांव चट्टानी पहाड़ों की गोद में बसता है जिसके लिए ग्रामीणों को अक्सर अत्री और वजीरगंज के बीच छोटी दूरी को पार करने के लिए विशाल मुसीबतों का सामना करना पड़ता था। उन्होंने पहाड़ पर हतोड़ा चलाना शुरू किया 1959 में अपने पत्नी की स्मृति में जिन्हें तत्काल उपचार के लिए समय पर निकटतम स्वास्थ्य देखभाल केंद्र में नहीं लिया जा सका क्योंकि सहर से जोड़ने वाला सबसे निकटतम रस्ता 50 Km लम्बा है जो पहाड़ को घूम के जाती है।

वह जानता था कि उसकी आवाज सरकार के कान में कोई प्रतिक्रिया नहीं पैदा करेगा, इसलिए, दशरथ अकेले इस अत्यंत कठिन कार्य को पूरा करने के लिए चुना। उन्होंने अपनी बकरियों को बेचके छेनी, रस्सी, और एक हथौड़ा खरीदा। लोग उनको पागल और सनकी उत्साही कहने लगे और इनकी विचार का कोई योजना नही है ऐसा बोलने लगे। अपने आलोचकों के हतोत्साहित टिप्पणी से बेफिक्र होके दशरथ ने लगातार 22 साल तक हतोड़ा चलाता रहा जिससे अत्री और वजीरगंज के बीच की दूरी 50 किलोमीटर से घटके 10 किलोमीटर हो गयी। एक दिन आया जब अपना सपना 'पहाड़ी के दूसरी ओर' जाने के लिए वे एक सपाट मार्ग के माध्यम से कदम बडाये जो एक किलोमीटर लंबी और 16 फुट चौड़ी थी।

यह असंभव उपलब्धि के बाद, दशरथ मांझी 'माउंटेन मैन' (पहाड़ मानव) के रूप में लोकप्रिय हो गया। 18 अगस्त, 2007 को वह नई दिल्ली में कैंसर से लड़ने के बाद ऑल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के अपने अंतिम सांस ली।

निचे दिए गए लिंक में जाके विडियो देखे:
http://www.youtube.com/watch?v=3E84EIKlY4g

Reference:
http://www.hindustantimes.com/India-news/Bihar/Mountain-man-Dashrath-Manjhi-dies-in-Delhi/Article1-242990.aspx

क्या आप जानते हैं ????????

20 दिसंबर 1978 को 132 यात्रियों के साथ इंडियन एयरलाइन्स की फ्लाइट आईसी- 410 की कलकत्ता- लखनऊ- दिल्ली उड़ान को हाईजेक कर लिया गया था। अपहरणकर्ता "देवेंद्र नाथ पांडे और भोला नाथ पाण्डेय" थे। इनके पास खिलौने की बंदूक थी और एक क्रिकेट का बल्ला था उससे डराकर हवाई जहाज को वाराणसी ले जाया गया। ये दोनों अपराधी "युवा कांग्रेसी" थे !!

उनकी प्रमुख मांग थी कि इदिरा गांधी को तुरंत छोडा़ जाये जो उस वक़्त चुनावों में धोखाधड़ी के आरोप में जेल में बंद थीं और संजय गांधी के भी सभी केस वापस लिये जायें...!!

बाद में इदिरा गांधी की सहायता से चरण सिंह की सरकार बनीं, दोनो अपहर्ताओं के "केस" वापस ले लिये गये इस वक्तव्य के साथ कि :
'ये तो दीवानगी थी। गांधी परिवार के प्रति, दीवानगी की हद तक समर्पण था।'

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अविश्वसनीय लगा आपको अभी आगे और पढिये ::
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>> वे दोनों कांग्रेस के टिकट पर उत्तर प्रदेश में 1980 में विधायक बनें।
>> भोला 1980 से 1985 तक कांग्रेस का विधायक रहा।
>> भोला को कांग्रेस नें "लोकसभा" का भी टिकट दिया।
>> देवेंद्र कांग्रेस सरकार में मंत्री बना।


http://en.wikipedia.org/wiki/Bholanath_and_Devendra_Pandey

Saturday, 3 November 2012

भारत में बंगलादेशी मुस्लिम


बिहार औए बंगाल के सीमावर्ती इलाका , खासकर किशनगंज, अररिया, ठाकुरगंज, बहादुरगंज ,पुरनिया और बंगाल के मुर्शिदाबाद, मालदा, दालकोला रायगंज, कालियागंज वगैरह जिले में बांग्लादेशी मुस्लिमो की दिन रात घुसपैठ से माहौल बहुत ही खराब हो गया है !
ये गाँव के गाँव आकर बस गए है ..दिन में मजदूरी करते है ये बधिया मिया ( बांग्लादेशी को इसी नाम से पुकारा जाता है उस इलाके में ) और रात में डकैती करते है , यही इनका पेशा
है !
बाग्लादेश बनने के बाद तो वहां से करीब पांच करोड़ लोग भारत में घुस आए थे। उन्हें फिर से बांग्लादेश भेजने के सर्वोच्च न्यायालय तक के आदेश का पालन भारत सरकार नहीं कर पा रही है। घुसपैठियों के कारण असम और बिहार के कई सीमावर्ती जिलों में आबादी का संतुलन बिगड़ गया है !
इन बधिया मिया को बसाने में इलाके की सांसद और विधयक का बहुत बड़ा हाथ होता है !
भारत बंगलादेश जो बोर्डर है वो खुला है ..बी.डी.आर. ( bangladesh raifal ) इनको प्रतिदिन रात में झुण्ड के झुण्ड भारत में घुसा देती है !
भारत में बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठियों की संख्या लगभग 15 करोड़ है । जनगणना में प्रति व्यक्ति 18.33 रूपये खर्च होंगे । यानी बंगलादेशियों पर ही लगभग साढ़े 273 करोड़ रूपये फूँके जायेंगे । भारतीयों की गाढ़ी कमाई से इतने रूपये फूँकने के बाद भारत को क्या मिलेगा ? टका-सा जवाब है कुछ नहीं । उल्टे भारत की जनसंख्या में ये चार करोड़ बंगलादेशी वैधनिक रूप से शामिल हो जायेंगे । जब ये यहाँ के नागरिक हो जायेंगे तो उन्हें भी वही अधिकार प्राप्त हो जायेगा जो एक भारतीय नागरिक को प्राप्त है। घुसपैठिये वोट डालेंगे, चुनाव लड़ेंगे, नौकरी करेंगे, मंत्री भी बनेंगे !
घुसपैठियों के कारण असम के कुल 27 जिलों में से 12 जिले मुस्लिम बहुल हो चुके हैं । धुबरी, ग्वालपाड़ा, नलवाड़ी, बारपेटा, हेलाकाण्डी आदि जिलों में हिन्दू अल्पसंख्यक हो चुके हैं ।
कोकराझार में सामाजिक संगठन से जुड़े एक व्यक्ति ने बताया कि कुछ ही साल बाद असम मुस्लिम राज्य हो जायेगा । उन्होंने यह भी बताया कि असम में हिन्दू भय के माहौल में रह रहे हैं । उन्हें अपना भविष्य सुरक्षित नहीं लग रहा है गुवाहाटी की पूर्व सांसद श्रीमती बिजोया चक्रवर्ती भी असम की स्थिति से बहुत चिन्तित है । उन्होंने बताया कि असम विधानसभा की कुल 126 सीटों में से 46 सीटों पर बंगलादेशी घुसपैठियों की वजह से मुस्लिमों का दबदबा हो चुका है । श्रीमती चक्रवर्ती ने यह भी बताया कि पूरे भारत में मतदाताओं की संख्या 1 प्रतिशत बढ़ती है तो असम में 7 प्रतिशत । इससे भी जाहिर होता है कि असम में बंगलादेशी मुस्लिम घुसपैठिए बड़ी संख्या में बस रहे हैं । इस कारण असम में हिन्दू दिनोंदिन अल्पसंख्यक हो रहे हैं ।

असम की इस परिस्थिति का जिम्मेदार कौन... ?

जब राजनेता अपना जमीर, आत्म सम्मान बेच दे तो राजनीति का वैश्यावृतिकरण
(Prostitution of Politics) शुरू होता है ये राजनीति का वैश्यावृतिकरण यू पी ए सरकार की ही देन हैं। बोडो आसाम राज्य की मिटटी से जुड़ी स्थानीय जनजाति है। बोडो जो भारत की संस्कृति का एक अभिन्न अंग है, बांग्लादेश की सीमा से आने वाले घुसपैठिये आज उन पर हमला कर रहे हैं और यू पी ए सरकार सुन्न होकर देख रही है। हुजी, आई एम और आई एस आई जैसे आंतकी गुटों की शह में आसाम के धरती की छाती पर पिछले कई वर्षों से ये बांग्लादेशी घुसपैठ पाकिस्तान का झंडा बैखोफ लहरा रहे है।

क्या मुस्लिम वोटों के लालच में यू पी ए सरकार इतनी अंधी हो गयी है कि इस धीमे जहर को चुपचाप फैलने दिया ? 1998 में रिटायर्ड लैफ्टीनेंट जनरल एस. के. सिन्हा जो उस समय असम के गर्वनर थे, के द्वारा भारत के राष्ट्रपति के. आर. नारायणन को यह कहकर चेतावनी दी गयी थी कि यदि इस भारत में अवैध घुसपैठ पर लगाम नही लगाई गयी तो भारत देश की सुरक्षा को गहन खतरा है। इस पर कांग्रेस एंव सी पी एम ने सिन्हा पर सामप्रादियक दंगों को उकसाने का आरोप लगाते हुये 22 कांग्रेस सांसदों द्वारा पत्र लिखवा राष्ट्रपति से
सिन्हा को वापिस बुलाने की मांग की। इन तथ्यों को जानते हुये भी भारत की सुरक्षा के लिये इस सरकार ने इस अवैध घुसपैठ पर कोई लगाम लगाने की जरूरत नही समझी, बल्कि हमारे प्रधानमंत्री के इस चुनाव क्षेत्र में बडे सम्मान से इन घुसपैठियों का राशन कार्ड और वोटर कार्ड से स्वागत होता रहा, आज हम उसी की सजा भुगत रहे है।

एक सप्ताह में करीब 500 गांवों से दो लाख तक लोग बेघर हो गये है और ऐसे में उसी आसाम राज्य के श्री मनमोहन सिंह भारत के प्रधानमंत्री है, जो न पहले कुछ बोले न अब कुछ बोल रहे है, न ही कोई सख्त कदम उठा रहे है।

सेकुलरिज्म की परिभाषा बार बार समझाने वाली इस यू पी ए सरकार ने गुजरात दंगों के समय नरेन्द्र मोदी को बदनाम करने में कोई कसर नही छोडी़, कि नरेन्द्र मोदी ने दंगें शुरू होने के दो दिन बाद रोकथाम के कदम उठायें। अब जब आसाम में दगें हो रहे है तब एक सप्ताह बाद तक भी यू पी ए सरकार की तरफ से न कोई ठोस कदम उठाया गया, न श्री मनमोहन सिंह, न श्रीमति सोनियागांधी और न ही श्री राहुल गांधी ने इस विषय में कुछ बोला .... आखिर क्यों ?
पिछले कुछ महीनों से आसाम जल रहा है और यू पी ए सरकार अपनी आंखे सेक रही है। विकीलिक्स द्वारा उदघाटित श्री राहुल गांधी जहां हिन्दू आंतक (Hindu Terror) की बात करते है, वही क्या आज उन्हें बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों का आंतक नजर नही आता? लगता है यू पी ए सरकार से उम्मीद रखना अब बेवकूफी है क्यूंकि इस देश में 125 करोड़ भारतवासी होने के बावजूद, अवैध रहने वाले बांग्लादेशी घूसपेंठियें भारत की गरिमा पर वार कर रहे है, आंतक फैला रहे है और सरकार अपने नेतृत्व में कमजोर पड़ रही हैं।

इस घटना से भारत वासियों को एक सीख लेने की आवश्यकता है कि सौ गधों का यदि एक शेर नेतृत्व करता है तो वो अवश्य विजय प्राप्त करता है, पर अगर सौ शेरों का यदि कोई एक गधा नेतृत्व करता है तो वह अवश्य पराजित होता है।

यू पी ए सरकार का नेतृत्व केवल 'खोखले नेतृत्व' का प्रदर्शन कर रहा है, ऐसे में यू पी ए सरकार के नेतृत्व पर कई प्रश्न खडें होते है। आज समय है कि भारत के प्रत्येक नागरिक को जागना होगा, अपने देश, अपनी मिटटी, अपनी संस्कृति एवं अपने आत्मसम्मान को बचाने के लिये ऐसी नाकाम सरकार को जड़ से उखाड़ फैंकना होगा।

Lets Wake-up India and Shake-up this UPA Govt.

याद रहे अगर हम अपना इतिहास नही बचा पाये तो हम अपना भविष्य भी नही बना पायेगें।

क्या आप जानते है की कोई मीडिया समूह हिन्दू या हिन्दू संघठनो के प्रति इतना बैरभाव क्यों रखती है.

भारत में चलने वाले न्यूज़ चैनल, अखबार वास्तव में भारत के है ही नहीं… ------------------------------------------------------ सन २००५ में एक फ़्रांसिसी पत्रकार भारत दौरे पर आया उसका नाम फ़्रैन्कोईस था उसने भारत में हिंदुत्व के ऊपर हो रहे अत्याचारों के बारे में अध्ययन किया और उसने फिर बहुत हद तक इस कार्य
के लिए मीडिया को जिम्मेवार ठहराया. फिर उसने पता करना शुरू किया तो वह आश्चर्य चकित रह गया की भारत में चलने वाले न्यूज़ चैनल, अखबार वास्तव में भारत के है ही नहीं… फीर मैंने एक लम्बा अध्ययन किया उसमे निम्नलिखित जानकारी निकल कर आई जो मै आज सार्वजानिक कर रहा हु .. विभिन्न मीडिया समूह और उनका आर्थिक श्रोत…… १-दि हिन्दू … जोशुआ सोसाईटी , बर्न, स्विट्जरलैंड , इसके संपादक एन राम , इनकी पत्नी ईसाई में बदल चुकी है. २-एन डी टी वी … गोस्पेल ऑफ़ चैरिटी, स्पेन , यूरोप ३-सी एन एन , आई बी एन ७,सी एन बी सी …१००% आर्थिक सहयोग द्वारा साउदर्न बैपिटिस्ट चर्च ४-दि टाइम्स ऑफ़ इंडिया, नवभारत , टाइम्स नाउ… बेनेट एंड कोल्मान द्वारा संचालित ,८०% फंड वर्ल्ड क्रिस्चियन काउंसिल द्वारा , बचा हुआ २०% एक अँगरेज़ और इटैलियन द्वारा दिया जाता है. इटैलियन व्यक्ति का नाम रोबेर्ट माइन्दो है जो यु पी ए अध्यक्चा सोनिया गाँधी का निकट सम्बन्धी है. ५-स्टार टीवी ग्रुप …सेन्ट पीटर पोंतिफिसिअल चर्च , मेलबर्न ,ऑस्ट्रेलिया ५-हिन्दुस्तान टाइम्स,दैनिक हिन्दुस्तान…मालिक बिरला ग्रुप लेकिन टाइम्स ग्रुप के साथ जोड़ दिया गया है.. ६-इंडियन एक्सप्रेस…इसे दो भागो में बाट दिया गया है , दि इंडियन एक्सप्रेस और न्यू इंडियन एक्सप्रेस (साउदर्न एडिसन) -Acts Ministries has major stake in the Indian express and later is still with the Indian कौन्तेर्पर्त ७-दैनिक जागरण ग्रुप… इसके एक प्रबंधक समाजवादी पार्टी से राज्य सभा में सांसद है… यह एक मुस्लिम्वादी पार्टी है. ८-दैनिक सहारा .. इसके प्रबंधन सहारा समूह देखती है इसके निदेशक सुब्रोतो राय भी समाजवादी पार्टी के बहुत मुरीद है ९-आंध्र ज्योति..हैदराबाद की एक मुस्लिम पार्टी एम् आई एम् (MIM ) ने इसे कांग्रेस के एक मंत्री के साथ कुछ साल पहले खरीद लिया १०- दि स्टेट्स मैन… कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया द्वारा संचालित इस तरह से एक लम्बा लिस्ट हमारे सामने है जिससे ये पता चलता है की भारत की मीडिया भारतीय बिलकुल भी नहीं है.. और जब इनकी फंडिंग विदेश से होती है है तो भला भारत के बारे में कैसे सोच सकते है.. अपने को पाक साफ़ बताने वाली मीडिया के भ्रस्ताचार की चर्चा करना यहाँ पर पूर्णतया उचित ही होगा बरखा दत्त जैसे लोग जो की भ्रस्ताचार का रिकार्ड कायम किया है उनके भ्रस्ताचरणकी चर्चा दूर दूर तक है , इसके अलावा आप लोगो को सायद न मालूम हो पर आपको बता दू की लगभग ये १००% सही बात है की NDTV की एंकर बरखादत्त ने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है.. प्रभु चावला जो की खुद रिलायंस के मामले में सुप्रीम कोर्ट में फैसला फिक्स कराते हुए पकडे गए उनके सुपुत्र आलोक चावला, अमर उजाला के बरेली संस्करण में घोटाला करते हुए पकडे गए. दैनिक जागरण ग्रुप ने अवैध तरीके से एक ही रजिस्ट्रेसन नो. पर बिहार में कई जगह पर गलत ढंग से स्थानीय संस्करण प्रकाशित किया जो की कई साल बाद में पकड़ में आया और इन अवैध संस्करणों से सरकार को २०० करोड़ का घटा हुआ. दैनिक हिन्दुस्तान ने भी जागरण के नक्शेकदम पर चलते हुए यही काम किया उसने भी २०० करोड़ रुपये का नुकशान सरकार को पहुचाया इसके लिए हिन्दुस्तान के मुख्य संपादक सशी शेखर के ऊपर मुक़दमा भी दर्ज हुआ है.. शायद यही कारण है की भारत की मीडिया भी काले धन , लोकपाल जैसे मुद्दों पर सरकार के साथ ही भाग लेती है..... सभी लोगो से अनुरोध है की इस जानकारी को अधिक से अधिक लोगो के पास पहुचाये ताकि दूसरो को नंगा करने वाले मीडिया की भी सच्चाई का पता लग सके.....